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________________ तीनोभांतय हांस जिनवानी घरोहै॥ ११॥ पन समुच्चय तीन मैत्तेतालीसराजू घनाकार फ लावटकथन। छय्यै॥ पूरयद्यिमतलै सातमध्यएव वयानी पंचस्व में पंच ते में एक वषा नी|| चहु मिलाप चहुअस तीन साठे परमानौ दक्षिणा उत्तरसातसाद चौबीसवमानो| उंची चौदह राजू गिनों अधिक ते तालिसत्ती नसे। यहधनाकार तिहूं लोन को केवलम्यान विषैले से |२२|| अथ अधोलोक एक सौ छयानवेरा जूनाथन छ। पूरवपछि मतले सातमध्य एकै गाई|| उभे मिलै सु आठ अर्धक रिचाखताई। दक्षिणा उत्तर सात गुगे अठ्ठाईस राजार्डचा | राजू सातसतक नानवैभयाजू। यह अधोलोक का सवक घाघनाकार जिनधर्म में मति करोयापक रिनरक में रहोस माग परम | १३|| अथ उधलोक एकसी से ताली सराजू मध्य लोक इकब्रम्हयां चदुहुभया मेलवटा पूरव पछिम दिसा अर्धक रिराजू तीनर या दक्षिणा उत्त रसात्तगुणीइक्कीसवयानीची सादेत्तीन साद तिहत्तरजानी||सावेतिहत्तर विधियह लोक अंतमो म्हला राजूइक सौ सत्तालीस सवधर्म करे पावै सुम२४॥ प्रथ तीनसे ते ता लीमराजू लोक मैताका जुदायार ॥ यालीस चालीस और चौतीस साईवाईस सोल
SR No.010419
Book TitleMahavira Vardhaman
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1115
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size56 MB
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