SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 625
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ -अथ प्रमाएास्वरुप विप्रतिपति निरस्ये दानों संख्या विप्रतिपतिं प्रति क्षिपन् सकल प्रमाणाभेद संदर्भ संग्रह परं प्रमाणे यता प्रतिपादकं वाक्य माह तद्वेयतितच्छब्देन प्रमाणं परामृश्यते तझमाणं स्वरुपेणा वगतं द्वेधाहि प्रकार मेव सकलन माएणभेदना मंत्र बांतभावात् तद्वित्व मध्यक्षानुमान प्रकारेणापि संभवतीति तदा शंका निराकरणार्थं सकल प्रमाए भद संग्रहशालनी संख्या प्रव्यक्तिकरोति प्रत्यन्तेन सदा दिति प्रत्यक्षवदय मारा लक्षणमितर परोक्षं ताभ्यां भेदा भिदात् प्रमाण स्येतिशेषः नहि पर परिकल्पितैकं द्वित्रिचतुः पंच शट्प्रमाणं संख्या नियमे निखिल प्रमा एगभेदाना अंतर्भाव विभावना शक्या कर्तु तथाहि मत्ले दोक प्रमाण वादिनश्वा वा कस्य नादांध्यक्षे लैगिकस्यांतभावयुक्तः तस्य द्विलक्षणत्वात् सामग्री स्वरुप भेदात् अथना प्रत्यक्षं प्रमाण मस्ति विसंवाद संभावात् निश्चिता बिना भावा लिंगा लिगि निज्ञान मनुमान मित्या, नुमा निक शासनं तत्र चस्व भाव लिंगस्य बहुल मन्यथा पिभावो दृश्यते तथाहि कराय रसोपेता नौमे तद्देशकाल संबंधिनां दर्शनपि दशांतरे कालांतरे द्रव्यांतर संबंधेचान्यया पिदर्शनातू स्वभाव हेतु व्य भिन्वाये वलता चूतवतू लता शिंशपादि संभावनाच्च तथा कार्य लिंग मपि गोपाल घटिकां दोधूमस्य शक्र मूहूनि चान्य
SR No.010419
Book TitleMahavira Vardhaman
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1115
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size56 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy