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________________ फल करेल हिसाता उत्नमननिनिर्वछि कपालै ||सोनर कर्मसत्रुकोटाले उन मत्याग करैजो कोई भोगमो मिसिर सिवसुख होई॥ उत्तमभ्या किंचन वतधारी परम समाधि दिशा विस्तारै । उनमवा चर्यमन लागे। नरस्तू रस हितमुकति पद पावे। दोहा करे कर्म की निर्जरा भो पिंजरूपविनाश अजर प्रमरपद को लहै । द्या नतसुख की रात्रि दशलक्ष रजा संपूर्ण ॥ त्रयस्वयंभ तो लिख्यते ॥ येन स्वयंवोधमयेन लोकाश्वार शिता के चन चित्तकार्ये प्रवेोधिता केचन मोक्ष || मार्ग । तमा रिनाथं प्रया मामि निसं उंडारमि क्षीरसमुद्र तो ये सेनापितो मेरु गिरौ जिनेद चका मजेता जन सौख्यकारी तां युद्धभावाद जि तं नमामि॥शा ध्यान प्रबंध प्रभवेन येन निहत्य कर्म्म प्रकृतीसमस्ता मुक्ति स्वरूपां पदवीज पे दो। तं संभव नौमिमहानुभावात् स्वनं यरी प्रय ननीक्षपातेजादिवन्हांत मिदं ददर्श । पत्रात इत्याह गुरु परो या नौमित्र मो दादभिनंदनंत ४॥ कुवा दवा दीज यता महांत | नयजमानेर्वचने गत्सु | जैनं मतं विस्तरतं च येन तं देवदेवं सुमति नमामि॥५॥ यस्यावता रेशति यै त्रिधिले । ववर्ष रत्नानि हरेर्निदिशात्॥ धिनाधिप हस मास
SR No.010419
Book TitleMahavira Vardhaman
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1115
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size56 MB
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