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________________ LL मुख-माटर तिक र केम्पो नली भवतपहर शीत वाच सो चंदननाहि । प्रभुयह गुण कीजै साना यो नुमराही | नंदी सशायद। उतमध्य क्षतनि नराज पुंज धेरै सो है। सवजीते प्रक्षसमाजनुमस मध्मर कोहे नंदी स्वभानुम कामविनास कदेव ध्यावो फूलन सो। सहोशील लछमीवेव छूये सुलन सोनं स्व० ४। पुरानेवज इंडीवलकार सोतुमने चूरा। चरुतुम दिग सो हैशार / अचरज है चुरा | नंदी स्वानैवेजमा दीपककी जो निप्रकाश नुमतन माहिल शै। इदूक र्मन की राशध्यान कनी दरसैा नंदी स्वारी पीक नागुरुधूप सुवाश दशो दिशन पर वरौ। अति हर्ख भावपरकासमा नौ न्दत्य करे नंदीवण निहुकाल मानदराचन है। तुमसिवफलदेहद या लयो हम जावत है| नंदी स्वगचाफख यहा र्घ की योनीज है न तुम को अ र्पत है। । द्यानत कियो सिव हेतम्पस मपर्त हूं। नदी व राजखात ॥ कार्तिक फागुण शाटके | अन भा र दिनमा हिनंरी स्वरसुर जात हम पूजे यहा हा १० नौ पई ॥ एकसो त्रिसङ्घको डिजोजन महा चौरासी यह विधिहमलहा अष्टमं दीपनंदीस रंभास्वरं/भौनभावन्नप्रनिमाल सुख करें | ११|| चारिदिश चारित्र्यंजनगिर राजदी । स सेहे चौरासी बहुविधिफलले
SR No.010419
Book TitleMahavira Vardhaman
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1115
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size56 MB
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