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________________ हिंसा का व्यापक रूप — जगत्कल्याण की कसौटी ૪૨ विष्णुकुमार मुनि की कथा दिगम्बर और श्वेताबर दोनों ग्रन्थो मे प्राती है । वर्षा ऋतु में साधु को विहार करना निषिद्ध है, परन्तु जब विष्णुकुमार मुनि को ज्ञात हुआ कि नमुचि नामक ब्राह्मण राजा हस्तिनापुर जैन श्रमणों को महान् कष्ट पहुँचा रहा है तो वे वर्षाकाल की परवा न करके अपना ध्यान भगकर हस्तिनापुर प्राये और नमुचि से तीन पैर स्थान माँगकर उसे समुचित दण्ड देकर श्रमण संघ की रक्षा की । बहुत बार राजा लोग श्रमणो के धर्म से द्वेष करनेवाले होते थे और इसलिये वे उन्हे बहुत परेशान करते थे । ऐसी असाधारण परिस्थिति उपस्थित होने पर कहा गया है कि जैसे चाणक्य ने नन्दो का नाश किया, उसी प्रकार प्रवचनप्रद्विष्ट राजा का नाशकर सघ और गण की रक्षाकर पुण्योपार्जन करना चाहिये । अनेक बार जब श्रमणियाँ भिक्षा के लिये पर्यटन करती थी तो नगरी के तरुण जन उन का पीछा करते थे और उन के साथ हँसी-मज़ाक करते थे । ऐसे आपद्धर्म के अवसर पर बताया है कि अस्त्र-शस्त्र मे कुशल तरुण साधु श्रमणी के वेष मे जाकर उद्दण्ड लोगो को अमुक समय अमुक स्थान पर मिलने का संकेत देकर उन्हे समुचित दण्ड दे" । सुकुमालिया साध्वी की कथा जैन ग्रंथो मे आती है - वह अत्यन्त रूपवती थी, अतएव जब वह भिक्षा के लिये जाती तो तरुण लोग उस का पीछा करते और कभी कभी तो उपाश्रय में भी घुस जाते थे । आचार्य को जब यह मालूम हुआ तो उन्होने सुकुमालिया के साधु भ्राताओ को उस की रक्षा के लिये नियुक्त किया। दोनों भाई राजपुत्र होने के कारण सहस्त्र -योधी थे, अतएव जो कोई उन की बहन से छेडछाड करता उसे वे उचित दण्ड देते थे । ८ बृहत्कल्प भाष्य ३, पृ० ८८० व्यवहार भाष्य ७, १० ६४-५ ; १, पृ० ७७ ९० बृहत्कल्प भाष्य २, पृ० ६०८ "वही, ५, पृ० १३६७-८ ४
SR No.010418
Book TitleMahavira Vardhaman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherVishvavani Karyalaya Ilahabad
Publication Year
Total Pages75
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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