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________________ महावीर वर्धमान गोत्र तथा मझौली राजवंश का उल्लेख कल्पसूत्र मे क्रम से वग्यावच्च गुत्त (व्याघ्रापत्य गोत्र) और मज्झिमिल्ला शाखा के रूप में किया गया है। इसी प्रकार महावीर और बुद्ध ने अपने अपने श्रमण संघ की स्थापना की थी। ये श्रमण लोग मठों या उपाश्रयों में रहते थे, सैकड़ों की संख्या में चलते थे, एक प्राचार्य के नेतृत्व में रहते थे और सब एक जैसे नियमों का पालन करते थे। जैन तथा बौद्ध श्रमण एक वर्ष में वर्षा ऋतु में चार महीने एक स्थान पर रहते थे, बाक़ी आठ महीने जनपद-विहार करते थे। जनपद-विहार के समय बताया है कि साधु को भिन्न-भिन्न देशों की भाषा तथा रीति-रिवाजों का ज्ञान होना चाहिये । पालि ग्रन्थो में कहा है कि बोधि प्राप्त करने के पश्चात् बुद्ध ने अपने भिक्षुत्रों से कहा था, "हे भिक्षुत्रो ! तुम लोग बहुजन-हित के लिये, बहुजन-सुख के लिये चारों दिशाओं मे जाओ, तथा आरंभ, मध्य और अत मे कल्याणप्रद मेरे धर्म का सब लोगों को उपदेश दो; एक साथ एक दिशा में दो मत जाओ।"६७ आज से अढ़ाई हज़ार बरस के पूर्व के अवैज्ञानिक युग मे श्रमणो को क्या क्या कष्ट सहन करने पड़ते थे, आज इस की कल्पना करना भी कठिन है। सब से प्रथम उन्हें पर्यटन का ही महान् कष्ट था। न उस समय सडके थी, न रेल-मोटरगाड़ी। मार्ग मे बड़े बड़े भयानक जंगल पड़ते थे जो हिंस्र जन्तुओं से परिपूर्ण थे। कही बड़े-बड़े पर्वतों को लाँधना पडता था, कही नदियों को पार करना पड़ता था, और कही रेगिस्तान मे होकर जाना " हथुप्रा और तमकुही के बगौछिया अाजकल भूमिहार ब्राह्मण कहे जाते हैं, तथा मझौली के राजा साहब अाजकल बिसेन-राजपूत कहे जाते है। ये एक ही मल्ल क्षत्रियों के वंशधर हैं (राहुल सांकृत्यायन, पुरातत्त्व निबंधावलि, पृ० २५७) "देखो बृहत्कल्प भाष्य, १.१२२६-४० " महावग्ग, महास्कंधक
SR No.010418
Book TitleMahavira Vardhaman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherVishvavani Karyalaya Ilahabad
Publication Year
Total Pages75
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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