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________________ ६७ जमालि ने वैराग्य पथ पर बढण सूं कोनो रोक सक्या। वो पांच सौ साथिया रे सागे महावीर रे चरणों में प्रव्रजित हुया । राणी प्रिय दर्शना (महावीर से वेटी) परण पति ने वैराग्य रे मारग पर बढ़ता देख संजम लियो । महावीर रा उपदेस घरणा प्रभावी हा सुरगतां पांरण लोगां नै प्रापै ई संसार री नश्वरता से बोध व्हे जावतो । भगवान मिनखा ने दीक्षा लेवण खातर वाव्य नी करता घर नी की दीक्षा से स्वर्ग में जावरण रो लोभ देवता । वो तो सहज भाव से जीवन री सांची स्थिति री खाण करावता । वा की बात सुरण लोग कैवा लागता - भगवन ! यापरी वाणी सांची है, आतमहित करण थाळी हे म्हां श्रपरं बतायोडा मारग पर काला री इच्छा राखां । I तीजो वरस : जयन्ती रा सवाल : माळी सू विहार कर भगवान कौसाम्वी पधारिया अर चन्द्रावतरण चैत्य में विराजमान हुया । भगवान रे पधारवा रा समीचार सुरण वैसाळो गणराज चेटक री पुत्री मृगावती, उण रो पुत्र उदायन र उदायन री भुत्रा जयन्ती महावीर रा उपदेस सुगरण खातर ग्राया । जयन्ती भगवान सू धरणाइ सवाल पूछिया, जियां १. जयन्ती पूछियो - भगवन् ! जीव हळको घर भारी कियां हुवै ? प्रभु कहो - पाप करम करण सू' जीव भारी र पापां री निवृत्ति सू जीव हळको हुवै । २. जयन्ती पुछियो - भगवन् ! मोक्ष री योग्यता जीव में सुभाव सू हुवे के परिणाम सू' श्रावे ? भगवान बोल्या - मोक्ष री योग्यता सुभाव सूं हुवै, परिणाम सूनीं ।
SR No.010416
Book TitleMahavira ri Olkhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Baccharaj Nahta
PublisherAnupam Prakashan
Publication Year
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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