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________________ ६० प्रभु महावीर रै शासनकाळ मे मुनिगरण स्वेच्छा से नियम, धरम री पाळणा करता हा संघ व्यवस्था में विनय, सरळता अर समानता ही । से श्रमरण गुरु री आज्ञा अर अनुशासन में चालता हा । साधना री दृष्टि सूं धरम संघ में तीन भांत रा श्रमण हा 1 श्रमण सरूं सू ं ई संघ री मरजादा सू १ प्रत्येक बुद्ध : अळगा रैय' र धरम साधना करता हा । २. स्थविरकल्पी : - श्रमण संघ री मरजादा अर अनुशासन मे रैय' र साधना करता । ३. जिनकल्पी : - श्रमण किरणी खास साधना पद्धति नै अपणा'र संघ री मरजादा सू' अळगा रैयर तपस्या प्रादि करता । प्रत्येक बुद्ध पर जिनकल्पी साधु स्वतंत्र रेवता । इणां नै किरणी रै अनुशासन की जरूरत नीं ही स्थविरकल्पी साधुवां खातर धरम संघ मे नीचे मुजब सात पदां री व्यवस्था ही : १. आचार्य - प्रचार विधि री सीख दे आळा २. उपाध्याय - श्रुत - शास्त्र रो अभ्यास कराण आळा । ३. स्थविर - वय, दीक्षा र श्रुत ज्ञान में बत्ता जाणकार । ४. प्रवर्तक - श्राज्ञा, अनुशासन री प्रवृत्ति कराण आळा | ५. भरणी - गण री व्यवस्था करण आळा | ६. गणधर - गण रो पूरो भार संभाळणिया । ७. गरगावच्छेदक संघ री संग्रह - निग्रह व्यवस्था रा जाणकार । सगळा पदाधिकारी संघीय जीवरण में शिक्षा, साधना, लाचार-मरजादा, सेवा, धर्म प्रचार, विहार जिसी व्यवस्थावां ने
SR No.010416
Book TitleMahavira ri Olkhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Baccharaj Nahta
PublisherAnupam Prakashan
Publication Year
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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