SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 64
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५४ सिद्धारथ पर खरक दवा लेय महावीर जठे ध्यानमगन हा, बढ़ गया। वठे पोंच'र वां देख्यो कै असह्य वेदना हुयां पारण भी महावार सात भाव सूध्यान में लोन है। खरक संडासी सूसळाका खैच'र बारै काढ़ी। सळाका रै सागै लोही री धारा बैवरण लागी। साधक जीवन री आ आखरी वेदना ही। कानां री सळाका बा'र निकलण स महावीर बाहरी दुखां सूईज मुक्त नी हुया । अब वी साधना रै इत्तें ऊंचै सिखर पर चढ़ग्या हा के वी सदा सर्वदा खातर आन्तरिक दुखा सूभी मुक्त हुयग्या। महावीर री तपस्या : छमस्थकाळ रै साढ़े बारा वरसां रै लम्बे समय में महावीर तीन सौ उनचास दिनां इज अाहार ग्रहण करियो। बाको रा दिनां में बिगर अन्न-पारणी लियां वी कठोर तपस्या करता रया । महावीर री प्रा तपस्या सब तीर्थकरां सूघरणी कठोर पर बेसी ही। इण री तालिका इण भांत हैछह मासिक तप-१ (१८० दिनां रो) पांच दिन कम छह मासिक (१७५ दिनां रो) तप-२ चातुर्मासिक तप-६ (१२० दिनां रो एक तप) तीन मासिक तप-२ (६० दिनां रो एक तप) सार्ध द्विमासिक तप-२ (७५ दिनां रो एक तप) द्विमासिक तप-६ (६० दिनां रो एक तप) सार्ध मासिक तप-२ (४५ दिनां रो एक तप) मासिक तप-१२ (३० दिनां रो एक तप) पाक्षिक तप-७२ (१५ दिनां रो एक तप) भद्र प्रतिमा-१२ (२ दिनां रो एक तप) महाभद्र प्रतिमा-१ (४ दिनां रो एक तप) पर्वतोभद्र प्रतिमा-१ (१० दिनां रो एक तप)
SR No.010416
Book TitleMahavira ri Olkhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Baccharaj Nahta
PublisherAnupam Prakashan
Publication Year
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy