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________________ ४. महावीर रै जनमकाल रो स्थिति जिण नमै भगवान महावीर रो जनम हुयो उरण समै देस पर समाज री हाळन वगो लगन हो। परम है नाम पर चारुकांनी टोग पर पाबा बोलबालो हो । यन में घी, सैत जिसी चीजां नै छाउर जोबना मिनाय पर जिनावरां री बळि दी जावती। पण नंस्कृति ने माना पाळा लोग जीव हिंसा रो विरोध करता तो लोग कंवता के भगवान जिनावगं ने यन में बलि देवरण खातर ज बगाया है, यज्ञ में जिनावगं री बलि देवण सूपाप कोनी लागे, प्रा हिमा कोनी। उग समै मत्र-तंत्रा में लोगा रो घणो विसवास हो। वी प्रातमशृद्ध मे धम्म नी मान र सिनान आदि बाहरी सरीर री गफाई न इज घगो महत्त्व देता र कैवता के सरीर नै कष्ट देणे इज मगांत मिले। कई तपस्वी पंचाग्नि तप करता हा। वी प्रापरणे ग्रामरण र चारूपानी प्राग जळा'र ऊपरसू सुरज री तेज गरमी महण करता। घणखरा तपस्वी नुकोलो मुइयां पर सूवता पर वीमूहोण पाळी शारीरिक पीडा ने मुगति रो साधन मानता। ___चारुकानी ब्राह्मण लोगा रो वर्चस्व हो । लोग वान भगवान दाई उत्तम समझता हा, भलैइ वे कित्ताइ दुराचार अर पाप करता। भगवान पार्श्वनाथ तप, संयम पर अहिसा री जा पवित्र धारा बहाई वा २५० बरसां पछ सूखण लागी। भगवान महावीर जद गाधना र क्षेत्र में पधारिया तद समाज में एक नी अनेक विषमतावां फंल्योड़ी ही। समाज मे धरम सूवत्तो धन रो महत्त्व हो । धनवान गरीबां नै जिवावरां जियां खरीद'र उग्णांने आपणा दास वरणाय लैवता ।
SR No.010416
Book TitleMahavira ri Olkhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Baccharaj Nahta
PublisherAnupam Prakashan
Publication Year
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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