SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 38
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४४ सावत्थी नगरी पधारिया । अठ नगर रै बा'रै कड़कड़ाती सर्दी री परबा कियां विगर रात भर ध्यान में लीन रह्या । सावत्थी सू विहार कर महावीर हेळदुग पधारिया । अठै एक रूख हेढ़ महावीर ध्यान मग्न हुया। सरदी सू बचवा खातर मारग चालरिणया लोगां वठे आग जलाई अर परभात व्हता पण बिगर आग बुझायांई वै प्रागै रवाना व्हैग्या। हवा रै झोखे सूसूखा घास फूस बळग्या। आग बळती-बळती महावीर रै कनै आयगी जिसू वांका पग दाझग्या पण फैरू भी महावीर ध्यान सूडिगिया कोनी। करम खफावरण खातर महावीर अनार्य देसां मांय पण विचरण करियो। एकदा महावीर लाढ देस कांनी आया । वठे उणाने भांत-भांत रा उपसर्ग (कष्ट) मिल्या। रैवरण नै ठीक जग्यांनी मिली। खावरण नै लखो-सूखो भोजन भी मुश्किलों सूमिलियो । अज्ञानी लोग वां पर रेत फेकता, गंडकड़ा पाछे दौड़ाय देवता, हथियारां सू सरीर पर वार करता पण महावीर सांत भाव सू सगळा कष्ट सहन करता पर निर्द्वन्द्व भाव सूआपण ध्यान में लीन रैवता । अनार्य देसां मांय विचरण करता-करता महावीर आर्य देस री भद्दिला नगरी मांय पधारिया अर अठै चौमासो कियो । इण काळ में महावीर भांत-भांत रा आसना रै सागै ध्यान करता थकां चातुमासिक तप री आराधना कीवी । छठो बरस : भद्दिला नगरी सूकदळी समागम, जम्बूसंड, तंबाय सन्निवेस जिसा नगरां में विहार करता थकां प्रभु वैसाली नगर पधारिया अर बठा सूग्रामक सन्निवेस । बठे विभेलक यक्ष रै रैवरण री ठौड़ महावीर ध्यान मगन हुया । यक्ष प्रभु र ध्यान पर तपोमय जीवन सू घणो प्रभावित हुयो । ग्रामक सन्निवेस सूप्रभु महावीर शालिशीर्ष नगर रै बारे
SR No.010416
Book TitleMahavira ri Olkhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Baccharaj Nahta
PublisherAnupam Prakashan
Publication Year
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy