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________________ (३) मौन वरत राखूला। , (४) हाथां में आहार करूंला। (५) जरूरत री चीजां खातर किणी गिरस्ती नै राजी राखण री कोसिस नी करूंला। यक्ष री बाधा : । वठासू महावीर अस्थिग्राम पधारिया। वठे एकान्त मे एक पुराणो टूट्योड़ो मिन्दर हो। इण मिन्दर में ठहरबारी प्राज्ञा वा वठारा गिरस्ती लोगां सूलीवी। गामवासी महावीर नै कयौ-अठ मत ठहरो।ओ तो सूळपाणी यक्ष रो मिन्दर है। अठ भूल सूकोई रेय जाव तो वो जिन्दो नी बचे । पण महावीर बठेइ ठहरबा रो निसचे कर लियो । वी मौत सूकद डरबानाळा हा । गामाळां लोगों ने महावीर री इण हिम्मत पर घणो इचरज हुयो। - यक्षरै मिन्दर में जा'र महावीर ध्यानलीन हुयग्या। रात रा अधारा में घणी डरावणी आवाजां प्रावण लागी । इण रोमहावीर पर काई प्रभाव नी देख यक्ष नै गुस्सौ पायग्यो। वी विकराळ हाथी, ना'र राक्षस, अर नाग जिसा सरूप बरणार महावीर नै घणी तकलीफां दीवी, पण महावीर सांत भाव सूसै परीसह सहन करता र्या। पाखर यक्ष हारग्यो। वीं नै पापणी इण हार पर घणी सरम पाई। वो मन ही मन सोचबा लाग्यो-यो पुरुस कोई साधारण मिनख नी हो'र बड़ो मिनख है। वीं प्रभु रै चरणों में पड़'र माफी मांगी। उण रो हिरदय पळटग्यो। वीं प्रापणी हिंसावृत्ति सदा-सदा खातर छोड़ दी। दिन उगै महावीर नै राजी खुसी ध्यानमगन देख गांवमाळा नै घणो इचरज हुयौ। 'दूजो बरस : अस्थि ग्राम रो चौमासो पूरो कर र महावीर वाचाला नगरी
SR No.010416
Book TitleMahavira ri Olkhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Baccharaj Nahta
PublisherAnupam Prakashan
Publication Year
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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