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________________ वृत्ति रो हो । पूरव जनम रा संस्कारां सूप्रेरित होयर वीं प्रभु ने ईख रै रस री भिक्षा दीवी। बो बैसाख सुद तीज रो दिन हो। भगवान री लम्बी तपस्या रो पारणो ई दिन हुयो। इण खातर श्रो दिन आखातीज रै नाम सूप्रसिद्ध हुयो । आज पण इण दिन वरसी तप रा पारणा हुदै । तप पर साधना करता-करतां पुरिमताळ नगर ₹ बार बड़ र रूख हेठे ध्यानमगन प्रभु नै केवळज्ञान हुयो। वे सर्वज्ञ, जिन, महन्त, बरणग्या। पछै लोककल्याण खातर उपदेस देवता थका केळास परवत पर आप निर्वाण प्राप्त करियो। भगवान ऋषभदेव जैन धर्म रा प्रवर्तक अर जैन परम्परा रा पैला तीर्थ कर हा । २. अजितनाथ : भगवान ऋषभ रै निर्वाण २ घणां बरसां पाछै विनीता नगरी रै महाराजा जितसत्रु री राणी विजयादेदी री कूख सूदूजा तीर्थंकर श्री अजितनाथ रो जनम हुयो । इणारो लांछण हाथी है। घरणा बरसां ताई पाप राज्य पर गिरस्थ जीवन रो उपभोग करियो । पछै आप दीक्षा लीवी पर कठोर तपस्या कर'र केवळज्ञानी बरण'र आप लोगां नै धरमदेसना दीवी पर सम्मेदसिखर पर निर्वाण प्राप्त करियो। ३. संभवनाथ : तीजा तीर्थ कर श्री संभवनाथ हुया । इरो जनम लावस्ती नगरी में इक्ष्वाकु वंस में हुयो । इणारै पिता रो नाम जितारी पर माता रो सोना देवी हो। आपरो लांछण घोड़ो है। लम्बा समय ताई गिरस्त जीवन में रैय'र आप दीक्षा लीवी पर तपस्या कर र केवळज्ञान प्राप्त करियो । आपरो निर्वाण सम्मेदसिखर पर हुयो।
SR No.010416
Book TitleMahavira ri Olkhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Baccharaj Nahta
PublisherAnupam Prakashan
Publication Year
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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