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________________ १३. संयम चउबिहे संजमेमणसंजमे, वइसंजमे, कायसंजमे उवगरण संजमे । स्था० ४।२ संयम चार प्रकार रो हुवै-मन रो संयम, वचन रो संयम, काया रो संयम अर उपधि (सामग्री) रो संयम । संजमेणं अणण्हयत्तं जणयइ उत्त० २६:२६ संयम सूजीव पाश्रव (पाप) रो निरोध करै । अजमे नियति च सजमे य पवत्तरणं उत्त० ३११२ असंयम सूनिवृत्ति पर संयम में प्रवृत्ति करणी चाइजै । तहेव हिंसं अलियं चोज्जं अवम्भ सेवगं। इच्छा कामं च लोभं च, संजनो परिवज्जए ।। उत्त० ३५३ संयमी प्रातमाहिंसा, झूठ, चोरी, अब्रह्मचर्य सेवन, भोगविळास अर लोभ रो सदा खातर परित्याग कर। १४. क्षमा खामेमि सम्वे जीवा, सब्वे जीवा खमंतु मे। मित्ती मे सन्वभूएसु, वेरं मझ न केणइ ।। आवश्यक सूत्र ४।२२ म्हूँ सव जीवा सूक्षमा मांगू, सव जीव म्हनै क्षमा करै। म्हारी सब जीवां रै सागै मित्रता है। किणोरै साग म्हारो बैर-विरोध कोनी। पुढविसमो मुणी हवेज्जा। दस० १.१ १३ मुनि नै धरती रै समान क्षमाणील हुवणो चाइजै । खतिएणं जीवे परिसहे जिणइ । उत्त० २६४६ क्षमा सूजीव परीसहां पर विजय प्राप्त करें।
SR No.010416
Book TitleMahavira ri Olkhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Baccharaj Nahta
PublisherAnupam Prakashan
Publication Year
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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