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________________ म्हारी बुष्प्रवृत्त आत्मा इज वैतरणी नदी पर कूटशाल्मली वृक्ष है। म्हारी सुप्रवृत्त प्रातमा इज काम-दूधा-धेनु (सें इच्छा पूरण करण माळी गाय) अर नन्दन वन है । सरीर माहु नावत्ति, जीवो वुच्चइ नाविनो । संसारो अण्णवो वुत्तो, ज तरन्ति महेसियो ।। सरीर नाव, प्रातमा नाविक अर संसार समन्दर कहयो जाने । मोम री इच्छा राखरिणयाँ महर्षि इणन तैर जाने । परिसा ! अत्ताणमेव अभिनिगिज्झ, एवं दुक्खा पमोक्खसि ।। आचा० ३।३।११६ हे पुरुष ! तूं अपणे आपरो निग्रह कर, खुद रै निग्रह सू सगला दुखा मुक्त हुय जाबैला ! अप्पा चेव दमेयब्बो, अप्पा हु खलु दुद्दमो । अप्पा दन्तो सुही होइ, अस्सिं लोए परत्थय ।। उत्त० ॥१५॥ मातमा रो इज दमन करणो चाइजै क्यू के प्रातमा दुरदम्य है । इणरो दमन करण आळो संयमी इण लोक अर परलोक में सुखी हुवे । वरं ने अप्या दन्तो, संजमेण तरेण य । नाऽह परेहि दम्मन्तो, बंधणेहिं वहेहि य॥ उत्त० १११६ दूजा लोग बंधन अर व म्हारो दमन करे, इणरी अपेक्षा प्रो बाच्छो है कै मुहूं खुद संयम अर तप सू आपणी पातमा रो इमन करूं।
SR No.010416
Book TitleMahavira ri Olkhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Baccharaj Nahta
PublisherAnupam Prakashan
Publication Year
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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