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________________ १४० प्राचारी, तपस्वी, दिगम्बर मुनियां री संख्या कम हुयगी पर एक नूवै भट्टारक वरग रो उदय हयो । जींरी साहित्य र क्षेत्र में महत्वपूर्ण देन है | जद भट्टारकां में आचार री शिथिलता आई तो उ ₹ खिलाफ एक क्रांति हुई, जिगरा अगुना हा - बनारसी दास । प्रो पथ तेरापंथ कहलायो । इण में टोडरमल जिसा विद्वान दार्शनिक हुया । वर्तमान में दिगम्बर परम्पर रा श्री देशभूषणजी, विद्यानंदजी आदि प्रमुख आचार्य अर मुनि है । श्वेताम्बर - परम्परा : श्वेताम्बर मत परण आगे जा'र दो भागों में बंट गयो - चैत्य वासी श्रर बनवासी । चैत्यवासी उग्र विहार छोड़' र मिन्दरां में रैवरण लागा । कालान्तर में श्वेताम्बर परम्परा में कैई गच्छ बरणग्या, जिगरी सख्या ८४ मानीजै । इरण में खरतरगच्छ अर तपागच्छ मुख्य है । कयो जावे के वर्धमानसूरि रा सिष्य जिनेश्वर सूरि सम्वत् १०७६ में गुजरात रे अणहिलपुर पट्टण रे राजा दुरलभराज री सभा में जद चैत्यवासियां नै पराजित किया तद राजा उणां नै 'खरतर ' नाम रो विग्द दियो । इरण भांत खरतरगच्छ नाम चाल पड़ियो । तपागच्छ रा संस्थापक श्री जगत्चन्द सूरि मानिया जावे । संवत् १२८५ में इरणां उग्र तप करियो । इरण रे उपलक्ष में मेवाड़ रा महाराणा जैतसिंह इणाने 'तपा' उपाधि से विभूषित कियो । तदसू श्र गच्छ तपागच्छ नाम से प्रसिद्ध हुयो । खरतरगच्छ श्रर तपागच्छ दोन्यू इ मूरति पूजा में विसवास राखे । ~ इण परम्परा में तरुण प्रभ सूरि, सोमसुन्दर सूरि, माणिक्य सुन्दर सूरि, मेरूसुन्दर, हीर विजय सूरि, राजेन्द्र सूरि, विजयवल्लभ सूरि जिसा कैई प्रभावी आचार्य अर मुनि हुया । वर्तमान में सर्वश्री धर्मसागरजी, विजय समुद्र सूरिजी यशोविजयजी जनकविजय जी, कान्तिसागर जी, कल्याण विजय जो, भद्र कर विजयजी, भानुविजय जी, विशाल विजय जी आदि प्रमुख आचार्य र मुनि है ।
SR No.010416
Book TitleMahavira ri Olkhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Baccharaj Nahta
PublisherAnupam Prakashan
Publication Year
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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