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________________ १३६ भागमा नै प्रामाणिक मानवा सू इन्कार कर दियो । श्वेताम्बर मान्यता रै मुजव अठा सूईज वास्तविक रूप में दिगम्बर परम्परा री सरूपात हुई। वल्लभी-संगीति : ___ याददास्त र आधार परटिक्योडो श्रत साहित्य धीरे-धीरे लुप्त हुवरण लागो। स्मृति दोष रै कारण भांत-भांत रा मतभेद पगा खड़ा हुयग्या । ई कारण महावीर रै निर्वाण रै लगभग एक हजार बरसां पार्छ प्राचार्य देवद्धिगरिग री अध्यक्षता में श्रमण संघ री एक सगीति वल्लभी (गुजरात) में हुई अर याददास्त रै आधार पर चल्या प्रायोड़ा आगम लिपिवद्ध करिया गया। इरंग लिपि करण सू साहित्य में स्थिरता अर एकरूपता आई पर आपस रा मतभेद भी कम हया । आगे जा'र आचार्य हरिभद्र, सिद्धसेन, समन्तभद्र, अकलक, हेमचन्द्र जिसा महान विद्वाना जैन साहित्य री घणी सेवा करी पर दर्शन, न्याय, काव्य, कोस, व्याकरण, इतिहास आदि सगळी दृष्टि सू जैन साहित्य नै समृद्ध बगायो । परम्परा-भेद: ओ तथ्य जागबा लायक है के महावीर रै निर्वाण र लगभग ६०० बरसां पाछै जैन धरम दो मतां में बटग्यो-दिगम्बर पर श्वेताम्वर । जो मत साधुग्रां री नग्नता रो पक्षधर हो पर उगने इज महावीर रो मूळ प्राचार मानतो हो वो दिगम्बर कहलायो। प्रो मत मूळ संघ रै नाम सू भी जाणीजै, अर जो मत साधुना रे वस्त्र, पात्र रो समर्थक हो वो श्वेताम्बर कहलायो। दिगम्बर-परम्परा आगे जा'र दिगम्बर मत कई संघा में बंटग्यो । इणां में मुख्य हैद्राविड़ संघ, काष्ठा संघ पर माथुर सघ। कालांतर में सुद्ध
SR No.010416
Book TitleMahavira ri Olkhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Baccharaj Nahta
PublisherAnupam Prakashan
Publication Year
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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