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________________ १२६ तीन गुणवत: पांच अणुव्रतां नै गुणाकार रूप में वढ़ावण खातर गुणाब्रतां री योजना हुनै । अगुणवत तीन प्रकार रा है१. दिग्वत : इण रो प्ररथ है चारू दिसावां में प्राण-जाणं रो परिमाण निश्चित करणो। २. देसवत : इण रो अरथ है-क्षेत्र विषयक हद वांधणी, अमुक नदी, पहाड़ आदि री सीमा सूबार नैपार नी करणो। ३. अनर्थदण्ड विरमण व्रत सरीर री चंचळता, अस्थिरता, वाणी रो अनर्गल उपयोग आदि अनर्थ दण्ड है। इण व्रत में इसा कामां सूबच्यो जाने जिण रै करण सूआपणो कोई भी प्रयोजन नी सर पर बिना कारणई पाप करमां रो संचय हुने। चार शिक्षावत: पांच व्रतां नै मजबूत बणावण खातर शिक्षावतां रो विधान करियो गयो है । औ शिक्षावत चार प्रकार रा है१. सामायिक व्रत : इणमें सगळा पापां रो त्याग कर समभाव नै प्राप्त करण री साधना की जानै । सामायिक करतां वगत श्रावक निष्पाप जीवन बितानै । इण सूतन, मन, अर वापी में स्थिरता माने। २. देसावकासिक व्रत : दैनिक व्रत ग्रहण करणरी प्रवृत्ति देसावकासिक व्रत कहीजे ।
SR No.010416
Book TitleMahavira ri Olkhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Baccharaj Nahta
PublisherAnupam Prakashan
Publication Year
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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