SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 124
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चारासी लाख जीव योनियां में भ्रमण करण आळा जीव एक जिसा रूप अर शक्ति आळा कोनी । कोई मिनख है तो कोई पसु, कोई पंछी है तो कोई कीड़ा-मकोड़ा। मनुष्य गति में पण अनेक भांत री विषमतावां देखण ने मिलै । कोई मिनख हृष्ट-पुष्ट है तो कोई दुबळो-पातरो। कोई रूपाळो मनमोवरणो है तो कोई कालो-कलूटो। कोई धनवान है तो कोई गरीब । कोई सुखी है तो कोई दुखी । कोई नीरोगी है तो कोई जनमजात रोग आळो । प्रभु महावीर इण सगळी विषमतावां रो कारण प्रापणा-प्रापणा करमा नै बतायो । पाच्छा करम रै बंध सूमिनख नै सुख अर बुरा करमां रै बंधण सूदुख मिलै । करम रो सरूप लोक व्यवहार पर सास्त्रां में करम सबद काम-धन्धा पर व्यवसाय करण रै अरथ में प्रयुक्त हुवै । खावरण-पीवण, हलण-चलण आदि कामां में भी करम सबद रो प्रयोग हुदै । परण जैन दर्शन में करम सबद रो एक विशेष प्ररथ, हुवै। संसारी जीव, जद राग-द्वेष युक्त मन, वचन, काया री प्रवृत्ति कर तद आतमा में एक स्पन्दन हुवै जिसू वा चुम्बक री दाई बीजा पुद्गळ परमाणुवां नै पापणी तरफ खीचे, अर नै परमाणु लोहे री दाई उरण सूचिपक जाने । औ पुद्गळ परमाणु भौतिक अर अजीव हुने पण जीव री राग-द्वेषास्मक मानसिक, वाचिक अर कायिक क्रिया रे द्वारा खींच'र प्रातमा रै सागै दूध-पाणी दाई घलमिल जाने, आग अरलो हपिण्ड री दाई आपस में एकमेक हुय जावै । जीव रै द्वारा कृत (क्रिया) हुवण सू में कर्म कहीजै । कर्म बंध रा मूल कारण राग अर द्वेष है । रागद्वेष री भावना रै वसीभूत हुय जै करम करै उण रो फळ वान अवस मिले । आच्छा करमा रो फळ आच्छो पर बुरा करमां रो फळ बुरो मिलै ।
SR No.010416
Book TitleMahavira ri Olkhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Baccharaj Nahta
PublisherAnupam Prakashan
Publication Year
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy