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________________ ! अ.वी.।। स्वर्गवासी देवोंको वहुत ऊंचापद देनेके लिये मानों बुला रहा है जिस नगरके लोक पु. भा. हा दाता, धर्मात्मा, शूरवीर, व्रतशीलादि गुणोंवाले जिनदेव निर्ग्रथगुरुकी भक्ति सेवा ! ॥४३॥ हा पूजामें लीन रहते थे। जिस नगरमें ऊंचे २ महलोंमें सुंदर नर नारी देवोंके समान ६) रहते थे जो कि न्यायमार्गमें लीन चतुर इस लोक परलोकके हित करनमें उद्यमी धर्मात्मा १) सदाचारी धनवान सुखी और बुद्धिमान् थे। . ऐसे उस नगरके स्वामी श्रीमान् सिद्धार्थ राजा थे । वे हरिवंशरूपी आकाशको 2 शोभायमान करनेके लिये सूर्यके समान व काश्यप गोत्री थे। वे महाराज, मति आदि तीन ज्ञान धारी, बुद्धिमान, नीतिमागको चलानेवाले, जिनदेवके भक्त, महादानी, दिव्यलक्षणोंसे युक्त, धर्मकर्ममें आगे होनेवाले, धीर, सम्यग्दृष्टि, सत्पुरुषोंसे अति प्रेमरखनेवाले, कला विज्ञान चतुराई विवेक आदि गुणोंके आधार, व्रतशील शुभध्यान S/ भावना आदिमें तत्पर, विद्याधर भूमि गोचरी और देवोंकर जिनके चरणकमल सेवित । हुए, राजाओंमें मुख्य, दीप्ति कांति प्रतापादि युक्त, दिव्य स्वरूप वस्त्र आभूषणोंकर सहित, धर्मके प्रवर्तानेवाले और अत्यंत पुण्यवान् थे। वे राजा देवोंमें इंद्रके समान सब 8 राजाओंके मध्यमें शोभायमान थे। . ॥४३॥ __उनके विसला नामकी प्राणप्यारी महाराणी थीं। वे अनुपम गुणोंसे जगत्का हित उबलन्स ।
SR No.010415
Book TitleMahavira Purana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherJain Granth Uddharak Karyalaya
Publication Year1917
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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