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________________ ध्यानी योगियोंसे अति शोभा देते हैं और ऊंचे २ जैनमंदिरोंसे नगर शोभायमान मालूम पड़ते हैं । जिस देशके ग्राम मौहल्ले वगीचे ऊंचे जिनालयोंसे शोभायमान होते थे। जिस Mallजगह मुनियोंके समूह और चार प्रकारके संघसहित गणधर, केवली भगवान् धर्मकी । प्रवृत्तिके लिये विहार करते थे। इत्यादि वर्णनवाले उस देशमें कुंडलपुर नामका नगर नाभिकी तरह वीचावीचमें || धर्मात्माओंके रहनेसे शोभित है। जो नगर ऊंचे परकोटे दरवाजे खाईसे रक्षा किया। गया शत्रुओंसे अलंध्य अयोध्या नगरीके समान है । जिस नगरमें केवली तीर्थकरोंके । कल्याणकोंके लिये आये हुए देवोंकी यात्रासे महान उच्छव होता था। जहांपर ऊंचे २||३|| जैनमंदिर सोंने व रत्नोंके बने हुए बुद्धिमानोंकर सेवित धर्मके समुद्रकी तरह मालूम होते। थे । जय जय शव्द स्तुति वगैरः व गाना बजाना नृत्य करने वगैरःसे और सुंदर सोनेके | उपकरणोसहित रत्नोंकी प्रतिमाओंसे वे जिनालय अत्यंत शोभायमान होते थे। | उन मंदिरोंमें पूजाके लिये आये हुए मनुष्योंके जोड़े जाना आना प्रति-i दिन करते थे इसलिए वे गुणोंसे देवोंके जोड़ेके समान मालूम होते थे। जिस नगरके दानीपुरुष भक्तिसे भरे हुए प्रतिदिन पात्रदानके लिये अपने घरके दरवाजोंपर/// सवार २ देखते थे कि का पात्र आवें । जो नगर अंचे २ महलोंकी धुनारूपी हाथोंसे || लाल लाल
SR No.010415
Book TitleMahavira Purana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherJain Granth Uddharak Karyalaya
Publication Year1917
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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