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________________ शिवचन कायसे प्रतिदिन विचारता हुआ। उन भावनाओंके चितवनके फलसे ||| शाशीघ्र ही तीन जगत्को क्षोभ करनेवाले अनंत महिमायुक्त ऐसे तीर्थंकर नाम कर्मको बांध-oll दाता हुआ। जिस तीर्थकर नामके प्रभावसे इन्द्रोंके आसन कंपायमान (चलायमान ) हो जाते हैं और मोक्षरूपी लक्ष्मी स्वयं आकर आलिंगन देती है अर्थात् मोक्ष उसी भवसे । होती है । उसके बाद वह मुनि मौतके समय तक निर्दोप चरित्रको पालता हुआ अपनी|| KI आयुको थोड़ी जानकर आहार और शरीरकी क्रियाको छोड़ मोक्षके लिये तीनजगतके सुखको करनेवाले और व्रतोंको सफल करनेवाले ऐसे संन्यास मरणको परम शुद्धिसे धारण करता हुआ। फिर सम्यग्दर्शन ज्ञान चारित्र तपरूपी मोक्षकी कारण चार आराधना-11 ओंको सेवनकर वह बुद्धिमान् मुनि सब जीवोंके रक्षक अपने प्राणोंको छोडता हुआ। Ma उसके बाद उस समाधिके फलसे वह नंद नामा मुनि सोलवें स्वर्गमें देवोंकर पूज्य अच्युतेन्द्र हुआ। वहां पर वह इंद्र अंतर्मुहूर्तमें उत्तम और रमणीक माला गहने वस्त्र । जबानी कर सहित शरीर पाता हुआ । रत्नोंकी उत्पादशिलापर कोमल शय्यासे हर्षके साथ उठकर आश्चर्यकारक और सुंदर सब चीजें देखने लगा। स्वर्गकी विमान आदि। संपदाओंको देख चित्तम अचंभित हुआ धीरे सोतेसे उठे हुएकी तरह वह इंद्र अपने मनमें ऐसा विचारता हुआ कि, मैं पुण्यवान् कौन हूँ, सुखोंकी खानि यह कौन।
SR No.010415
Book TitleMahavira Purana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherJain Granth Uddharak Karyalaya
Publication Year1917
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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