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________________ संघ साधु मनोज्ञ-इन दस प्रकारके महात्मा मुनियोंकी वैयावृत्य (टहल ) मोक्षके लिये करता हुआ, जो कि अपने और परके लाभ पहुंचानेवाला है। वह मुनि धर्म अर्थ काम और मोक्षके देनेवाली अर्हत भगवानकी महान भक्ति ॥३८॥ मनवचनकायसे निरंतर करता हुआ । संघसे पूजित पंच आचारोंमें लीन. और छत्तीस 8|गुणोंके धारक ऐसे आचार्यकी रत्नत्रयको प्राप्त करानेवाली भक्ति करता हुआ । संसाहारको प्रकाश करनेवाले और अज्ञानरूपी अंधकारको नाश करनेवाले ऐसे उपाध्याय ? III मुनीश्वरोंकी ज्ञानकी खानि भक्तिको धारण करता हुआ। वह मुनि एकांतमतरूपी अंध- 12 शकारको नाश करनेवाली समस्ततत्वोंके स्वरूपसे पूर्ण ऐसी जिनवाणी माताकी भक्ति करता हुआ। वह योगी समता १ स्तुति २ त्रिकालवंदना ३ प्रतिक्रमण ४ प्रत्याख्यान ५ और व्युत्सर्ग ६ ये सिद्धांतमें कहेहुए छह आवश्यक पापोंके नाशार्थ योग्यकालमें नियमसे करता था। भेदविज्ञानसे, तपस्यासे तथा उत्कृष्ट आचरणोंसे हमेशा जीवोंका हित करने|वाली श्रेष्ठ जैनधर्मकी प्रभावना करता हुआ । सम्यग्ज्ञानी पुरुषोंका अच्छीतरह आदर करके वह मुनि धर्मको देनेवाले धर्मात्माओंसे वात्सल्य [ प्रीति ] रखता हुआ। ___इस तरह तीर्थकरकी विभूति देनेवाली सोलह कारण भावनाओंको शुद्ध मन उन्न्कन्छ 500 ॥३८॥
SR No.010415
Book TitleMahavira Purana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherJain Granth Uddharak Karyalaya
Publication Year1917
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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