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________________ हुए स्थितिकरता हुआ । हेंमतऋतु अर्थात् सर्दीके दिनों में चौरायेपर, नदीके किनारे बर्फ से व्याप्त स्थलमें जले हुए वृक्षकेसमान वह मुनि कायोत्सर्ग तप करता हुआ । गर्मी के दिनों में सूर्य की किरणोंसे गर्म हुई पहाड़की सिलापर ध्यानामृतका स्वादी वह मुनि सूर्यके सामने तिष्ठता हुआ । इत्यादि अनेक प्रकार के कारणोंसे कायक्लेशतप वह धीरवीर मुनि शरीर इंद्रिय - सुखकी हानिके लिये हमेशा करता हुआ । इसप्रकार वाह्य छह तरहका तप अंतरंग तपकी वृद्धि के लिये पालता हुआ । वह मुनि दशप्रकार आलोचना आदि से प्रमादरहित होके चारित्रको शुद्ध करनेवाले प्रायश्चित्त तपको धारण करता हुआ । मनवचन कायकी शुद्धि से वह मुनि सम्यग्दर्शन ज्ञान चरित्र और इनके धारण करनेवाले परमधुनीश्वरोंकी विनय करता हुआ । आचार्यको आदि मनोज्ञ मुनियोंतककी सेवा आज्ञा आदि दस प्रकारका वैयावृत (टहल) करता हुआ। वह मुनि प्रमादरहित होकर इंद्रियमनको वश करने के लिये योगोंको वश करनेवाले अंग पूर्व शास्त्रोंका पांच तरह स्वाध्याय करता हुआ । बुद्धिमान् वह मुनि निर्ममत्वसुख के लिये शरीरादिसे ममता छोडके कर्मरूपी वनको भस्म करने के लिये व्युत्सर्गं तप करता हुआ । वह श्रेष्ठ बुद्धिवाला मुनि धर्मध्यान शुक्लध्यानमें लीन होकर स्वमंभी आर्तध्यानको नहीं विचारता हुआ, जो आर्तध्यान अनिष्ट
SR No.010415
Book TitleMahavira Purana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherJain Granth Uddharak Karyalaya
Publication Year1917
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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