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________________ य" वी. ॥३०॥ हुआ मनुष्यो कोठे वैठा । उस चक्रीके हितकेलिये वे केवली भगवान् दिव्य ध्वनी द्वारा गणधर के प्रति भावना सहित धर्मका उपदेश करते हुए । इस संसार में आयु लक्ष्मी भोग राज्य इंद्रियसुख वगैरः विजलीके समान क्षण विनश्वर हैं ऐसा जानकर बुद्धिमानोंको निल मोक्षका सेवन करना चाहिये । इस जगत् में जीवको मौंत रोग क्लेश दुःख वगैरःसे रक्षा करनेको कोई शरण नहीं है । एक धर्म ही शरण है । वही दुःखादिकों के नाशके लिये पालना चाहिये । यह संसारसमुद्र महान् दुःखोंकी खानि है। उसके पार होनेके लिये रत्नत्रयको सेवना चाहिये | जन्म मरण बुढापेमें अपनेको अकेला समझकर अपने कल्याणके लिये एक जिनेन्द्र देवका ही सेवन करना चाहिये । शरीर से अपनेको जुदा समझ कर मरणके समय शरीरसे ममत छोड अपने आत्माका ध्यान करना चाहिये । इस शरीरको सात धातुमयी निंदनीक दुर्गंधी मलका घर देखकर बुद्धिमान पुरुष धर्मको क्यों नहीं आचरते ? | बड़े खेदकी बात है । कम के आस्रवसे ( आने से ) जीवोंका इस संसार समुद्र में डूबना होता है ऐसा समझकर बुद्धिमानोंको कर्मोंकी हानिकें लिये जिनदीक्षा धारण करनी चाहिये । सज्जनोंको कम संचर ( रोकने ) से निश्चय कर मोक्षलक्ष्मी मिलती है इसलिये गृहवास छोड़कर मुक्ति के लिये संवरमें प्रयत्न करना चाहिये । इस संसार में भव्य जी पु. भा. अ. ५ ॥३०॥
SR No.010415
Book TitleMahavira Purana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherJain Granth Uddharak Karyalaya
Publication Year1917
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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