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________________ - - पहलेका मिथ्यात्वरूपी जहर उगल दिया. इसकारण अब वह सिंह शुद्ध चित्त होगया। फिर दोनों मुनियोंकी परिक्रमा देकर मस्तक नवाकर सात तत्व व देव शास्त्र गुरुका श्रद्धानरूप सम्यक्त्व हृदयमें धारण करता हुआ तथा वह सिंह काललब्धिके ( अच्छी का होनहारके ) आजानेपर संन्यासव्रत सहित सव व्रतोंको स्वीकार करता हुआ । इस सिंहका आहार मांसके सिवाय दूसरा नहीं था जब मांस छोडै तव व्रत पालन होवै इसलिये व्रतके आचरण करनेमें अत्यंत धीरज रखता हुआ । आचार्य कहते हैं जब अच्छी हा होनहार आजाती है तव कोनसा कठिन कार्य नहीं होसकता यानी सभी होसकते हैं। उसी समयसे वह सिंह शांतचित्तवाला सब पापोंसे रहित संयमी होता हुआ ऐसा ||मालूम होने लगा कि मानों चित्रामका सिंह है। वह सिंह संसारकी दुःखमयी स्थितिको हमेशा चित्तमें वार २ विचारता हुआ भूख प्यासकी वेदनाको सहता हुआ। धीरजपनेसे सव जीवॉपर दयाभाव करता हुआ एकाग्रचित्तसे दोनों तरहके ( आर्त रौद्र) खोटे ध्यानोंको छोडता हुआ। फिर पापोंका नाश करनेकेलिये निश्चल अंग करके स्थिर चित्त होके धर्म ध्यान और सम्यक्त्व वगैरह का चितवन करता हुआ। Sil इस प्रकार वह सिंह जीवन पर्यंत व्रतोंको पूर्णपनेसे पालनकर अंतमें समाधि मरणसापूर्वक प्राणोंको छोड़ता हुआ। व्रतादिकोंके फलसे सौधर्म नामके पहले स्वर्गमें महान् न्लन्छन्डन्न्न्न्लन्डन्न् सन्न्कन्छन् - -
SR No.010415
Book TitleMahavira Purana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherJain Granth Uddharak Karyalaya
Publication Year1917
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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