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________________ म. वी. र जहरके समान छोड़कर आत्मशुद्धिका कारण सम्यक्त्वको धारणकर, जो सम्यक्त्व धर्म 1 रूपी कल्पवृक्षका बीज है, मोक्षमहलके चढ़नेकी पहली सीढी है । ऐसे सम्यक्त्वको शंकादि ॥२१॥ दोषोंकर रहित होकर स्वीकार कर, जिससे कि तुझे शीघ्र ही निश्चय करके तीन जगत्की विभूति, तीनजगत्में होनेवाले चकवर्ती आदिका सुख तथा आकुलतारहित 8 । अर्हत्पदका सुख मिलजावे । क्योंकि तीन जगत्में सम्यग्दशनके समान न तो कोई धर्म हुआ न होगा और न है ही। वह सम्यक्त्व ही सव कल्याणोंका साधनेवाला है ॥ मिथ्यात्वके समान है कोई पाप भी तीन लोकमें न हुआ न होगा न मौजूद ही है वह मिथ्यात्व ही सब अन-8 थाँका मूल कारण है। वह सम्यक्त्त्व जीवादि साततत्त्वोंके श्रद्धानसे और सर्वज्ञदेव, शास्त्र है निग्रंथ गुरुओंके श्रद्धानसे होता है जिसके होनेसे ही ज्ञान चारित्र सच्चे कहे जाते हैं ऐसा। ? - जिनेन्द्रदेवने कहा है । इस लिये हे भव्य तू सम्यक्त्व के साथ उत्कृष्ट श्रावकके बारह । व्रतोंको धारणकर और अंतमें संन्यास व्रतसे प्राणोंके छोड़ । अन्य सव मांसादिभक्षण? । हिंसादि पापोंको छोड़दे। अब तुझे संसारमें भटकनेका डर छूट गया इसलिये श्रेष्ठ मार्गमें ६ रुचि (प्रीति) कर और खोटे मार्ग जाना छोड़दे। ॥२१॥ ६. इस प्रकार योगीके मुखसे प्रकट हुए सच्चे धर्मरूपी अमृतरसको पीता हुआ और
SR No.010415
Book TitleMahavira Purana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherJain Granth Uddharak Karyalaya
Publication Year1917
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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