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________________ 100004 1 लेकिन मैंने स्वर्ग मोक्षका देनेवाला परमधर्म नहीं धारण किया और कल्याणके देनेवाले अहिंसादि व्रतोंको भी नहीं पाला । कोई तप भी नहीं किया, पात्रको कभी दान नहीं दिया, जिनेंद्र देवकी पूजा नहीं की । और भी कोई शुभ कार्य नहीं किया । इसीलिये सव महान् पापके आचरण करनेसे उनके फलका उदय आनेपर इस समय बड़ी भारी तकलीफ़ मेरे आगे खड़ी होगई अर्थात् मैं बहुत दुःखी हूं । हाय ! अब मैं कहां जाऊं किसे पूछें किसकी शरण जाऊं और मेरा यहां कौन रक्षा करनेवाला हो सकता है। २৩৬৬56 इत्यादि चिंताओं से उत्पन्न निरुपाय पछतावोंसे उसका चित्त अत्यंत दुःखी हो | रहा था इतनेमें ही पुराने नारकी आकर इस नये नारकीको देख मुद्गर वगैर: हथियारोंसे | मारने लगे । कोई दुष्ट उसके नेत्रोंको निकालने लगे, कोई सब अंगों को फाड़ते हुए आंतोंको निकालने लगे, कोई निर्दयी उसके शरीरके तिल २ भरके टुकड़े कर कड़ाहमें औटाने लगे । कोई हथियारसे उसके सब अंग उपांगोंको काटने लगे । फिर चिल्लाते हुए उसे गर्म तेलके कड़ाहमें दाह उत्पन्न करानेके लिये पटकते हुए । उस कड़ाहमें उसका सव शरीर जल गया इससे वह अत्यंत दाहसे पीड़ित हुआ उस दाहकी शांतिके | लिये वैतरणी नदीके जलमें डुबकीं लगाता हुआ । जलसे पीडित होकर असिपत्रवनमें विश्राम करनेके वहाँपर अत्यंत खारी व दुर्गंध लिये गया । उस वनमें हवाके 1206
SR No.010415
Book TitleMahavira Purana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherJain Granth Uddharak Karyalaya
Publication Year1917
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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