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________________ इस प्रकार उन गणधरके कहनेके वाद राजा श्रेणिक उन गणधरको प्रणाम पु. भा. ६ कर अपने साथ अभयकुमार पुत्रके पूर्वजन्मोंका वृत्तांत पूछता हुआ। वे गौतम गणधर ॥१५॥ K उस राजाके ऊपर कृपादृष्टि करके उस अभयकुमारकी जन्मावलि कहते हुए। इसी भरतहै क्षेत्रमें एक सुंदर नामका ब्राह्मणका पुत्र था वह लोकमूढता आदि तीन मूढता सहित ) है मिथ्यादृष्टि वेदोंका अभ्यास करनेके लिये अहंदास जैनीके साथ रास्तेमें चलता हुआ है है पीपलके नीचे बहुतसे पत्थरोंको देख ' यह मेरा देव है' ऐसा कहकर उस वृक्षकी है। ? प्रदक्षिणा दे नमस्कार करता हुआ। ऐसी उसकी चेष्टा देख वह अहंदास उस मिथ्यातीको ज्ञान करानेके लिये हँसकर । । उस वृक्षको पैरसे धक्का देकर तोड़ता हुआ । उसके आगे कपिरोमनामकी वेलिको देख वह श्रावक अर्हदास मायाचारीसे ' यह मेरा देव है ' ऐसा कहकर नमस्कार करता हुआ । उस पहलेकी ईपीसे वह ब्राह्मण हाथोंसे उस वेलको. उखाड़कर लेता हुआ। हैं वेलिके छूजानेसे उस विपके सब अंगमें खुजली रोग होगया । फिर वह उस वेलिसे। हैं डरकर अहंदाससे बोला कि हे मित्र यह तेरा देव सच्चा है। यह वात सुनकर वह जैनी उस मिथ्यातीको सत्य समझानेके लिये कहने लगा ॥१५०॥ है कि अरे भद्र ( भले आदमी ) ये वृक्ष हैं ये कुछ विगाड़ सुधार नहीं कर सकते । ये
SR No.010415
Book TitleMahavira Purana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherJain Granth Uddharak Karyalaya
Publication Year1917
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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