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________________ म. वी. है; क्योंक शुभ परिणामोंसे प्राणोंके त्यागनेसे स्वर्ग मिलता है परंतु व्रतको भंग कर-II पु. देनेसे नरकमें जाना पड़ता है। ॥१४७॥ ऐसा उस भीलका नियम सुनकर उस समय सारसपुरसे आया हुआ उस भीलका सूरवीर नामका मित्र मनमें शोक (रंज ) करके मिलनेके लिये नगरको जाता हुआ। रास्तेमें बड़े भारी वनके वीचमें पड़के वृक्षके नीचे किसी देवीको रोता हुआ देख वह मित्र पूछने लगा । हे देवी तू कौन है किसलिये रोती है ? यह कह । ऐसा सुनकर वह । देवी ऐसे बोली कि हे भद्र मेरे वचन तू सुन । मैं वनकी यक्षी मनकी व्यथासे दुःखी Kil हुई यहां रहती हूं। क्योंकि तेरा मित्र खदिर मरनेको ही है वह शुभके उदयसे कौएके मांसका त्याग करनेसे प्राप्त पुण्यके उदयसे मेरा पति होगा । सो हे शठ अव तू उसे है मांस खिलानेको जाता हुआ उसे वृथा ही नरकके घोर दुःखोंका पात्र बनाना चाहता है। है । इस कारण आज मैं रंजमें हुई रोती हूं। उस देवताके वचन सुनकर वह मित्र बोला कि-हे देवी तू शोकको छोड़ दे मैं ६) उसका नियमभंग कभी नहीं करूंगा। ऐसे वचनोंसे उस देवीको संतोपित कर वह ॥१: ३. मित्र बहुत जल्दी उस रोगी भीलके पास आकर उसके परिणामोंकी परीक्षा (जांच)
SR No.010415
Book TitleMahavira Purana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherJain Granth Uddharak Karyalaya
Publication Year1917
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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