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________________ लन्डन्न्न्न्न्ल वह भील मुनिसे ऐसा बोला कि-हे योगी मैं इस समय तो एकदम मांस मदिरा वगैरः ? का त्याग नहीं कर सकता । ऐसा सुनकर उसकी असमर्थता देख मुनि वोले, हे भील पहले तू यह कह कि तैंने पहले कौएका मांस खाया है या नहीं। ऐसा सुनकर वह भील ऐसा कहता हुआ कि मैंने कौएका मांस तो कभी नहीं | खाया। उसके बाद वे मुनि बोले यदि ऐसा है तो सुखके लिये है भद्र तू उस काक|मांसके खानेका अब नियम ले, क्योंकि नियमके विना ज्ञानियोंको पुण्य कभी नहीं है | होता। वह भील भी उन मुनिके वचन सुनकर खुश हुआ ऐसा बोला कि-हे स्वामिन् है है यह व्रत तो मुझे दीजिये। ऐसा कह शीघ्र ही व्रतको लेकर यतिको नमस्कार कर वह भील है' ४ अपने घर गया। किसी समय उसके अशुभ (पाप) के उदयसे असाध्य रोग होनेपर उसकी 8. 2 शांतिके लिये कोई वैद्य (हकीम ) कौएके मांसको औषधमें बतलाता हुआ। उस ? समय उस मांसके खानेमें घृणा करनेवाला वह भील अपने कुंटुंबियोंसे बोला कि हे भाइयो। करोड़ों जन्मोंमें दुर्लभ व्रतको छोड़ जो मूर्ख प्राणोंकी रक्षा करते हैं उससे धर्मा त्माओंको कुछ लाभ नहीं, क्योंकि प्राण तो जन्म २ में मिल जाते हैं परंतु शुभ करने-15 IS वाला व्रत नहीं मिल सकता । व्रत भंग करनेकी अपेक्षा प्राणोंका त्याग देना अच्छा, neeeeeeeee न्छन्डन्न्छन्
SR No.010415
Book TitleMahavira Purana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherJain Granth Uddharak Karyalaya
Publication Year1917
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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