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________________ १८ क्षमादि दस लक्षणोंसे उसी भवमें मोक्षका देनेवाला परमधर्म होता है । इसी धर्मसे मुनीश्वर सर्वार्थसिद्धिका सुख तथा तीर्थकरका सुख निरंतर भोगकर मोक्षको जाते हैं । इस संसार में धर्मके समान दूसरा कोई भी भाई स्वामी हितका करनेवाला पापका नाशक | और सब कल्याणोंका करनेवाला नहीं है । अथानंतर इस भरत क्षेत्र ( भारत वर्ष ) के आर्य खंड में उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी नामके दो काल कहे गये हैं । इसी तरह ऐरावत क्षेत्रके आर्यखंड में भी जानना चाहि उनमें से रूप वल आयु देह सुख-इनकी हमेशा वृद्धि होनेसे सार्थक नामवाला उत्सर्पिणी काल दस कोड़ाकोड़ी सागरका ज्ञानियोंने कहा है । अवसर्पिणीकालमें रूप बल आयु वगैरहकी हीनता होनेसे सार्थक नाम अवसर्पिणी काल है । इन दोनोंके जुदे जुदे छह भेद हैं । अवसर्पिणीका पहला काल सुखमासुखमा है। वह चार कोड़ा कोड़ि सागरका है । उस कालके शुरू में आर्य पुरुष उदय हुए सूर्य के समान रंगवाले होते हैं, उनकी आयु तीन पल्यकी और शरीरकी ऊंचाई तीन कोसकी होती हैं। तीन दिनके बीत जानेपर उन मनुष्यों का दिव्य आहार बेरफलके बरावर है और नीहार यानी मलमूत्र नहीं होता । उस कालमें मद्यांग तूर्यांग विभूपांग मालांग ज्योतिरंग दीपांग गृहांग भोजनांग वस्त्रांग और भांजनांग- इस तरह दस जातिके कल्पवृक्ष होते हैं। वे उत्तम पात्रदान के फलसे पुण्यवानोंको मनोवांछित महान भोग संपदायें देते हैं । 1500GOO.GOD 4GCC
SR No.010415
Book TitleMahavira Purana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherJain Granth Uddharak Karyalaya
Publication Year1917
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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