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________________ सन्न्न्न्ब्स करनेवाला शास्त्रज्ञान नहीं, सम्यग्दर्शनादि रत्नत्रयसे उत्कृष्ट कोई मोक्षका मार्ग नहीं, पांच परमेष्ठियोंसे बढ़कर भव्योंको कोई दूसरा हित करनेवाला नहीं है । पात्रदानसे बढ़कर कोई भी दान मोक्षका कारण नहीं है । परलोकको जानेके लिये साथ २ जानेवालोंमें 8 धर्मसे बढ़कर कोई नहीं है । आत्माके ध्यानसे. वढ़कर दूसरा कोई उत्कृष्टध्यान केवलज्ञानका कारण नहीं है धर्मात्माओंके साथ भीतिके सिवाय दूसरा कोई प्रेम धर्म और । सुखका देनेवाला नहीं है। वारह तपोंके सिवाय दूसरा कोई तप कर्मक्षयको नहीं कर सकता।पंच नमस्कार महामंत्रके सिवाय दूसरा कोई ऐसा मंत्र भोग और मोक्षका देनेवाला नहीं है। कर्म और इंद्रियोंसे बढ़कर कोई भी इसलोक तथा परलोकमें अत्यंत दुःखके ४/देनेवाला नहीं है इत्यादि सब कार्योंको हे गौतम ! तू सम्यग्दर्शनके मूलकारण समझ और और ज्ञान चारित्रका मुख्य कारण मोक्षमहलकी सीढ़ी तथा व्रत वगैरहका ठिकाना सम्यग्दर्शनको ही जान । .. । हे गौतम सम्यग्दर्शनके विना पुरुषोंका ज्ञान तो अज्ञान होजाता है और चारित्र कुचा रित्र होजाता है तथा सब तप निष्फल होता है। ऐसा जानकर निःशंकादि गुणोंसे शंका हामूढ़ता वगैरह सब मैलोंको हटाकर चंद्रमाके समान निर्मल सम्यक्त्वको दृढ करना हा Mचाहिये । सज्जनोंको तत्वार्थों ( पदार्थों ) का ज्ञान विपरीतपनेरहित 'यथार्थरीतिसे है। :
SR No.010415
Book TitleMahavira Purana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherJain Granth Uddharak Karyalaya
Publication Year1917
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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