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________________ अठारहवां अधिकार ॥ १८ ॥ . हन्छन् श्रीवीरं मुक्तिभर्तारं वंदे ज्ञानतमोपहम् । विश्वदीपं सभांतःस्थं धर्मोपदेशनोद्यतम् ॥१॥ भावार्थ-मुक्तिके पति, अज्ञानरूपी अंधकारके नाश करनेवाले संसारके दीपक सभाके अंदर विराजमान हुए धर्मोपदेश देनेमें उद्यमी ऐसे श्री महावीर स्वामीको मैं नमस्कार करता हूं ॥ ___ अथानंतर वे प्रभु श्रीगौतम गणधरसे कहते हुए कि हे बुद्धिमान् गौतम ! मैं है, जो मुक्तिके मार्गको कहता हूं उसे तू जीवगणांके साथ सावधानतासे सुन, जिस मार्गसे , ज्ञानी जीव निश्चयकर मोक्षको जाते हैं । जो शंका आदि दोपोंसे रहित निःशंकादि गुणों सहित तत्वार्थीका श्रद्धान है वह व्यवहार सम्यग्दर्शन है । वह सम्यग्दर्शन मोक्षका अंग है। Wish इस संसारमें अर्हतसे बढ़कर कोई उत्कृष्ट देव नहीं हो सकता निग्रंथसे ज्यादा। कोई गुरु नहीं है, अहिंसादि पांचव्रतोंसे अधिक उत्तम असलमें कोई धर्म नहीं हो सकता, ॥१३२॥ जैनमतसे उत्तम कोई मत नहीं, ग्यारह अंग चौदह पूर्वसे बढकर कोई सबको प्रकाश
SR No.010415
Book TitleMahavira Purana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherJain Granth Uddharak Karyalaya
Publication Year1917
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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