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________________ | याद करते हैं तथा मिथ्यामार्गी भेषधारी पाखंडियोंके दोषोंको कभी नहीं जानते वे इस संसारमें विना गंधके फूलके समान निर्गुणी होते हैं । जो धर्मके लिये मिथ्यादृष्टि देवोंकी खोटे भेषधारी साधुओं की सेवा भक्ति करते हैं और श्रीजिनदेव धर्मात्मा उत्तम योगियोंकी कभी सेवा नहीं करते वे पापी पापके | फलसे पशुके समान पराधीन हुए जगहं २ पराई नौकरी करते फिरते हैं । जो हमेशा तीन लोकके स्वामी अर्हत प्रभुकी तथा गणधर जिनागम योगियोंकी सेवा करते हैं। और सब मिथ्यामतों को छोड़कर मनवचनकायको शुद्धकर अर्हत आदिकी पूजा नमस्कार करते हैं वे पुण्यके उदयसे इस संसार में सव संपदाओंके स्वामी होते हैं । जो निर्दयी व्रतरहित हुए अपनी संतान बढानेके लिये पराये वालकों को मार डालते हैं और बहुत मिथ्यात क्रियाओंको करते हैं उन मिथ्यातियोंके मिथ्यात्वकर्मके फलसे थोड़ी उम्रवाले पुत्र होते हैं और वे पापी पुत्र शीघ्र मरजाते हैं ! जो चंडी क्षेत्रपाल गौरी भवानी आदि मिथ्याती देवताओंकी पूजा सेवा पुत्रके लाभ होने के लिये करते हैं लेकिन पुत्र आदि सब कार्योंको सिद्ध करनेवाले अर्हतः प्रभुकी सेवा नहीं करते। वे मिध्याती मिथ्यात्वकर्मके उदयसे भवभवमें संतानहीन बंध्यापनेवाली स्त्रियोंको पाते। हैं। जो दूसरोंके पुत्रोंको अपनी संतान के समान समझकर कभी नहीं मारते, मिथ्या
SR No.010415
Book TitleMahavira Purana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherJain Granth Uddharak Karyalaya
Publication Year1917
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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