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________________ २७ पूजा करते हैं और भाग्य से मिले हुए बहुत भोगोंको धर्मकी सिद्धिके लिये छोड़ देते हैं वे | इस लोक में धर्म के प्रभाव से महान भोगादि संपदाओं को पाते हैं । जो इस संसार में दिनरात अन्याय कार्योंसे भोगोंकी इच्छा करते हैं और बहुत भोगोंके सेवन करने से भी संतोष नहीं पाते, पात्रदान जिनेन्द्रपूजा सुपनेमें भी नहीं करते, वे पापी पापके फलसे भोगादिसे रहित दीन ( भिखारी ) होते हैं । जो हमेशा धर्मका सेवन करते हैं, जिनेश्वर देवकी पूजा करते हैं, सुपात्रको भक्तिसहित दान देते हैं, तप व्रत यम आदिको पालते हैं और लोभसे दूर हैं ऐसे सत्पुरुषोंके पास पुण्यके उदयसे । जगत् में श्रेष्ठ लक्ष्मी अपने आप आजाती है । जो समर्थ होने पर भी पात्रदान जिनपूजा धर्मका काम और जैनियों का उपकार नहीं करते तथा लोभसे सब लक्ष्मी के पाने की इच्छा करते हैं वे धर्मव्रत से रहित हुए पापके फलसे दुःखी हुए जन्मजन्म में निर्धन ( दरिद्री ) होते हैं । जो पशुओं का व मनुष्योंका उनके बाल बच्चे वगैरः कुटुंबियोंसे वियोग करा देते हैं और पराई औरत लक्ष्मी व अन्य वस्तुओं को हर लेते ( चुरा लेते ) हैं वे शीलरहित पापी अशुभ कर्मके उदयसे निश्चयकर जगह २ पुत्र भाई प्यारी स्त्री लक्ष्मी वगैरः इष्ट वस्तुओंसे वियोग पाते हैं। जो दूसरे जीवोंको वियोग ताड़ना ( मारना ) वगैर: से दुःखी नही
SR No.010415
Book TitleMahavira Purana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherJain Granth Uddharak Karyalaya
Publication Year1917
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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