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________________ २०॥ 1. वी. णाम भावसंवर है । जो योगियोंकर महाव्रतादि श्रेष्ठ ध्यानोंसे सब कर्मास्रवोंका निरोध शाकिया जाता है वह सुखका करनेवाला द्रव्यसंवर है। IN मैंने पहले संवरके कारण महाव्रत परिषहोंका जीतना आदि कहे हैं वे बुद्धिMalमानोंको जानने चाहिये । जीवोंके निर्जरा सविपाक और अविपाकके भेदसे दो तरहकी होती है। उनमेंसे मुनीश्वरोंके अविपाक और सब जीवोंके सविपाक होती है । मैंने पहले निर्जराका वर्णन विस्तारसे कर दिया है इसलिये अव पुनरुक्त दोषके डरसे है सा नहीं कहता । जो मोक्षार्थी जीवोंका परिणाम सब कर्मोंके नाशका कारण हो वह अतिशुद्ध परिणाम भावमोक्ष जिनेंद्रदेवने कहा है और अंतके शुक्लध्यानके प्रभावसे ? ज्ञानमयी आत्माको सब कर्मोंसे छूट जाना वह द्रव्यमोक्ष है। | जैसे पैरोंसे लेकर मस्तकतक सैकड़ों बंधनोंसे बंधेहुए पुरुषको बंधनोंके छूट जानेपर हमेशा अत्यंत सुख मालूम होता है उसीतरह असंख्यात कर्मबंधनोंसे सब तरसाफसे वंधेहुए जीवको मोक्ष होनेसे आकुलतारहित अनंत सुख प्राप्त होता है। कर्मोंसे । छूटनेके वाद यह अमूर्त ज्ञानवान् अति निर्मल आत्मा ऊपर जानेका स्वभाव होनेसे । कमरहित हुआ ऊपरको सिद्धालयमें जाता है। वहांपर निरावाध अनुपम आत्मजन्य विषयातीत आकुलतारहित वृद्धिहानिरहित नित्य अनंत सर्वोत्तम सुखको ज्ञानशरीरी ॥१२०॥ वह सिद्ध परमात्मा भोगता है। S
SR No.010415
Book TitleMahavira Purana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherJain Granth Uddharak Karyalaya
Publication Year1917
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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