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________________ - कोड़ी सागरकी है । नाम और गोत्रकर्मकी वीस कोडाकोड़ी सागरकी स्थिति है । आयुकर्मकी उत्कृष्ट स्थिति तेतीस सागरकी है-इस प्रकार आठों कर्मोंकी उत्कृष्ट स्थिति जिनेद्रदेवने कही है। | वेदनीय कर्मकी जघन्यस्थिति वारह मुहूर्त है नाम और गोत्रकर्मकी आठ मुहूर्त जघन्य स्थिति है तथा वांकीके पांच कर्मोंकी अंतर्मुहूर्त जघन्यस्थिति है। इनके वीचकी मध्यम स्थिति अनेक प्रकारकी सब कर्मोंकी जानना । अशुभ कर्मोंका अनुभाग नींव ही कांजी विप और हालाहल ऐसे चार तरहका है। शुभ कर्मोंका भी अनुभाग गुड़ खांड़ मिश्री और अमृतके समान चार तरहका है । इस तरह क्षण क्षणमें उत्पन्न सव कर्मोंका अनुभाग संसारियोंके सुख दुःख देनेवाला अनेक तरहका है। Ka संसारी जीवोंके सव आत्मप्रदेशोंमें अनंतानंत सूक्ष्म कर्म परमाणु सब जगह Kएकमेक होकर मिल जावें उन कर्मपरमाणुओंके बंधको प्रदेशबंध कहते हैं । वह प्रदेशAध सब दुःखोंका समुद्र है । इसतरह चार प्रकारका बंध बुद्धिमानोंको दर्शनज्ञान चारित्र तपरूपी वाणोंसे वैरीकी तरह नाश कर देना चाहिये । जो बंध सब दुःखोंका है, कारण है । रागद्वेपरहित जो चैतन्य परिणाम कोंके आस्रवको रोकनेवाला है वह परि - लडळामारून
SR No.010415
Book TitleMahavira Purana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherJain Granth Uddharak Karyalaya
Publication Year1917
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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