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________________ मोतियोंकी मालाओंसे सोंनेकी जालियोंसे अंधकारको नाश करनेवाले प्रकाशमान रत्नोंसे वह कुबेर देव करता हुआ । उसके वर्णन करनेको श्री गणधर के सिवाय कोई बुद्धिमान् समर्थ नहीं हो सकता । उस गंधकुटीके बीच में इंद्र अमूल्य रत्नोंसे जड़ा हुआ सोंनेका दिव्य सिंहासन बनाता हुआ । वह सिंहासन अपनी प्रभासे सूर्यको भी जीतनेवाला था । करोड़ सूर्यो से भी अधिक प्रभावाले वे श्रीमहावीर भगवान् तीनजगत् के भव्योंसे घिरे हुए उस सिंहासनको अलंकृत करते हुए । वे महावीर प्रभु अनंत महिमा सहित सव भव्योंके उद्धार करनेमें समर्थ अपनी महिमासे सिंहासन के तलभागसे चार अंगुल ऊपर ( अंतरीक्ष ( निराधार ) विराजमान थे । इसप्रकार बुद्धिमानोंकर नमस्कार किये गये, लोकके शिरोमणि, देवोंकर रची हुई अनुपम वाह्य विभूतिकर शोभायमान, अनुपम अनंत गुणोंसहित और केवलज्ञान संपदाकर भूषित ऐसे श्री जिनेन्द्र भगवान् महावीर प्रभु हैं। उनको मैं नमस्कार करता हूं । जो महावीर प्रभु तीन लोकके भव्यजीवोंके तारनेमें वहुत चतुर कर्मरूपी वैरियों के नाश करनेवाले दिव्य बारह सभाओंसे वेढ़े हुए धर्मोपदेशमें उद्यत विना कारण बन्धु ( हितू ) अनंत चतुष्टयकर विराजमान हैं उनको मैं उनकी संपदाकी प्राप्तिके लिये नमस्कार करता हूं । असाधारण गुणोंके खजाने केवल ज्ञानरूपी नेत्रवाले तीन लोकके
SR No.010415
Book TitleMahavira Purana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherJain Granth Uddharak Karyalaya
Publication Year1917
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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