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________________ म.वी. और चार जगह चारों दिशाओंमें बहुत बड़ी २ थीं। उस पहली पीठिकापर आठ 2) मंगलद्रव्य रक्खे हुए थे । और यक्षोंके ऊंचे ऊंचे मस्तकोंपर धर्मचक्र रक्खे हुए थे। वे एक एक हजार दैदीप्यमान आराओंकी किरणोंसे ऐसे शोभित होते थे मानों भव्यजीवोंको धर्म ही कह रहे हौं । उस पहली पीठिकाके ऊपर सोनेका बना हुआ 1 दूसरा पीठ था वह कांतिसे सूर्य चंद्रमाके मंडलको जीतनेवाला था । उस दूसरे पीठके ऊपरी भागपर आठों दिशाओंमें चक्र हाथी बैल कमल वस्त्र सिंह गरुड और 12 मालाके चिन्हवालीं आठ सुंदर धुजायें थीं वे ऐसी मालूम होती थीं मानों सिद्धोंके आठ गुण ही हों । उस दूसरे पीठके ऊपर तीसरा पीठ था वह समस्त रत्नोंका बना हुआ था उसकी स्फुरायमान रत्नोंकी प्रभासे अंधकार नष्ट हो गया था। वह पीठ अपनी अनेक मंगल संपदाओंसे व अपनी किरणोंसे स्वर्गवासियोंके तेजको जीतकर मानों हँस, ही रहा हो ऐसा मालूम पड़ता था। उस तीसरे पीठके ऊपर जगत्में श्रेष्ठ गंधकुटी बनी हुई थी वह तेजकी मूर्ति सरीखी। दीखती थी। वह गंधकुटी दिव्यगंध महा धूप अनेक माला और पुष्पोंकी वर्षासे आका-., ॥१०॥ IS शको सुगंधित करनेसे यथार्थ नामवाली थी। उस गंधकुटीकी रचना अनेक आभूषणोंसे
SR No.010415
Book TitleMahavira Purana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherJain Granth Uddharak Karyalaya
Publication Year1917
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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