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________________ - - शोभासे स्वामी के कर्मवैरीकी जीत पुरुषोंके सामने कहनेको उद्यमी हुए हों। उन खंभोंकी मौटाई अठासी अंगुलकी थी और पचीस धनुष अर्थात् पचास गजका फासला था, ऐसा गणधर देवने कहा है । मानस्तंभ ध्वजास्तंभ सिद्धार्थ चैत्यक्ष स्तूप तोरणसहित प्राकार और वनवेदिका-इनकी तीर्थकरकी उंचाईसे वारह गुनी उंचाई थी और लंबाई चौड़ाई 100 उसीके योग्य ज्ञानी पुरुषोंको जान लेना चाहिये । वनोंकी सब महलोंकी और पर्वतोंकी || उंचाई भी इतनीही है ऐसा द्वादशांगपाठी गणधर देवने कहा है। पर्वत अपनी उंचाईसे 21 आठ गुणे चौड़े हैं और स्तूपोंकी मौटाई उंचाईस कुछ अधिक है। सब तत्वोंके जाननेवाले देवोंसे पूजित ऐसे गणधरदेव वेदिका वगैरःकी चौड़ाई चाईसे चौथाई कहते हैं । उस वनके बीचमें कहींपर नदियां कहींपर वावड़ी कहीं वालके ढेर कहीं सभामंडप बने हुए थे । वनके बड़े रास्तेके अंदर सोनेकी बनी हुई ऊंची वन वेदिका थी वह चार दरवाजोंसे शोभायमान थी। इसके भी तोरण मंगलद्रव्य आभूपण वगैरः संपदायें गाना नांचना वाजे वगैरः पहलेकी तरह कहे हुए जानना । । अयानंतर उस रास्तेके आगे चलकर देवशिल्पियोंकर बनायी गई एक गली है वह अनेक मकानोंकी पंगतिसे शोभायमान है । उसके खंगे सोनेके हैं उनमें हीरे जड़े हुए हिं चंद्रकांतमणिकी दिव्य भीते ( दीवाले ) हैं वे अनेक रत्नोंसे चित्र विचित्र हैं। वे महल सदन I
SR No.010415
Book TitleMahavira Purana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherJain Granth Uddharak Karyalaya
Publication Year1917
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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