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________________ धुजाओं में देवशिल्पियोंने मोर वगैर: की मूर्तियां बहुत सुंदर बनाई थीं। वे ध्वजायें हर एक | दिशामें सब मिलकर एक हजार अस्सी थीं इसतरह चारों दिशाओंकी सब चार हजार तीन सौ वीस थीं । उससे आगे चलकर भीतरकी तरफ दूसरा चांदीका बना हुआ परकोटा था । उस परकोटेका वर्णन पहले परकोटेकी तरह ( समान ) जानना । दरवाजे पूर्ववत् थे । परंतु चांदीके थे उनमें आभूषणों सहित बड़े २ तोरण थे । नव निधियां मंगल द्रव्य नाटकशाला दोनों उसी तरह दो दो धूपघड़े बड़े रास्ते के दोनों तरफ थे । उन | नाट्यशालाओं में गीत नृत्यादि पहले कोटकी तरह जानना । comma उसके बाद भीतरकी तरफ कुछ दूर चलकर रास्ताओंके वगलमें कल्पवृक्षोंका वन था वह अनेक प्रकारके रत्नोंकी कांतिसे अत्यंत प्रकाशमान हो रहा था । वे कल्प. वृक्ष रमणीक ऊंचे श्रेष्ठ छायावाले अच्छे फलोंवाले उत्तम माला वस्त्र आभूषणोंसे युक्त थे इस लिये अपनी संपदासे राजाके समान मालूम होते थे । उन दसतरहके कल्पवृक्षोंको देखकर ऐसा मालूम पड़ता था मानों कल्पवृक्षोंको लेकर देव कुरु उत्तर कुरु भोगभूमिस्थान ही भगवानकी सेवा करनेको आये हों । उन कल्पवृक्षोंके फल : आभूषणोंके
SR No.010415
Book TitleMahavira Purana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherJain Granth Uddharak Karyalaya
Publication Year1917
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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