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________________ म. वी. IS आदि महान् सैंकड़ों उत्सवोंके साथ धीरे २ स्वर्गसे उतरकर ज्योतिषी देवोंके पट लोंमें प्राप्त हुए। ॥१५॥ । चंद्रमा सूर्य ग्रह सब नक्षत्र तारे रूप असंख्याते ज्योतिषीदेवेंद्र भी अपनी २ विभव I/ सहित अपनी २ सवारियोंपर चढे अपने देवों सहित धर्मके रागरसमें लीन भगवानके ज्ञानकल्याणकके लिये उन कल्पवासी देवोंके साथ पृथ्वीपर नीचे आते हुए । इधर पहला है। 18 चमरेन्द्र दूसरा वैरोचन भूतेश धरणानंद वेणु वेणुधारी पूर्ण वसिष्ठ जलाभ जलकांत है। ६) हरिषेण हरिकांत अग्निशिखी अग्निवाहन अमितगति अमितवाहन इंद्रघोप महाघोष वेलांजन है 18 प्रभंजन-ये वीस असुर आदि दस भवनवासी देवोंके इंद्र भी अपनी २ सवारियों के तथा देवियोंसे शोभायमान हुए पृथ्वीको फाड़कर केवलज्ञानकी पूजाके लिये पृथ्वीके । । ऊपर आये। उसके बाद पहला इंद्र किंनर, किंपुरुप तत्पुरुष महापुरुष अतिकाय महाकाय | गीतरति रतिकीति मणिभद्र पूर्णभद्र भीम महाभीम सुरूप प्रतिरूपक काल महाकालये किंनरादि आठ तरहके व्यंतर देवोंके सोलह इंद्र और इतने ही प्रतींद्र देवोंसहित अपनी है। २ सवारियोंपर चढे महान् अपनी २ संपदाओंसहित ज्ञान कल्याणकके लिये पृथ्वीको ९५ MAI भेदकर शीघ्र पृथ्वीपर आते हुए।
SR No.010415
Book TitleMahavira Purana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherJain Granth Uddharak Karyalaya
Publication Year1917
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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