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________________ तेरवां अधिकार ॥ १३ ॥ निस्संगं विगताबाधं मुक्तिकांतासुखोत्सुकम् । ध्यानारूढं महावीरं वंदे वीरगुणाप्तये ॥१॥ 5. भावार्थ-परिग्रहरहित वाधारहित मोक्षस्त्रीके सुखको चाहनेवाले और ध्यानमें १ लीन ऐसे श्री महावीर प्रभुको उनके गुणोंकी प्राप्तिके लिये मैं नमस्कार करता हूं। अथानंतर वे महावीर प्रभु छह महीने आदि अनशन तप करनेमें अत्यंत समर्थ थे तो भी दूसरे मुनीश्वरोंकी चर्या मार्गकी प्रवृत्तिके दिखानेके लिये पारणा करनेकी हा वृद्धि करते हुए । जो पारणा ( उपवासके अंतमें भोजन करना ) शरीरकी स्थिति रखने है वाला है। बादमें वे ईर्यापथ शुद्धिसे चलते हुए ऐसा कुछ विचार करते हुए कि यह है निर्धन है या धनवान् इसके आहार शुद्ध है या नहीं। अपने चित्तमें तीन प्रकार वैराग्य ४ चितवन करते हुए वे प्रभु दानियोंको संतोप करते हुए स्वयं शुद्ध आहार हूंढ़ते हुए। न तो बहुत धीरे चलना और न एकदम तेजीसे चलना इस प्रकार पैर रखते हुए क्रमसे वे महावीर प्रभु कूल नामके रमणीक नगरमें प्रवेश करते हुए। वहां कूल राजा 1८५॥
SR No.010415
Book TitleMahavira Purana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherJain Granth Uddharak Karyalaya
Publication Year1917
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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