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________________ करररररललललललल हे जगत्के प्रभु चंचल लक्ष्मीको छोडकर उत्तम लोकाग्रपर रहनेवाली मोक्षलक्ष्मीको । इच्छा करनेवाले आपके इस संसारमें आशा रहितपना कैसे कहा जा सकता है ? । है । देव ! कामदेवरूपी शत्रुको ब्रह्मचर्यरूप बाणों द्वारा मार देनेसे उसकी स्त्री रतिको विधवा ] कर देनेसे आपके हृदयमें कृपा कैसे कही जा सकती है। हे नाथ! ध्यानरूपी महान् बाणोंसे मोहराजाके साथ सब कर्मरूपी वैरियोंको मार देनेसे आपके दिलमें दया कहां है ? । हे देव! अपने थोड़ेसे वंधुओंको छोड़कर अपने गुणोंके प्रभावसे जगत्के साथ परम वंधुपना करनेसे आपको बंधुरहित कैसे कहसकते हैं ? । हे चतुर सर्पके फणके समान भोगोंको । छोडकर शुक्लध्यानरूपी अमृतको पीनेसे आपके प्रोषधव्रत कैसे होसकता है ? । हे स्वामिन् ! जिसने जगत्का ताप शांत कर दिया है और बुद्धिमानोंकर पूजित ऐसी तेरी यह पवित्र महान् दीक्षा पुण्यधाराके समान हम भव्यजीवोंकी रक्षा करो। हे देव जगत्को पवित्र करनेमें समर्थ ऐसी शुद्ध दीक्षाको मन वचन कायकी शुद्धिसे धारण करनेवाले तथा मोक्षकी इच्छावाले आपको नमस्कार है । शरीर आदिके सुखमें 3 निस्पृही मोक्षके मार्गमें वांछावाले तपरूपी लक्ष्मीसे प्रीति करनेवाले और दोनोंतरहक परिग्रहोंको छोडनेवाले आपको नमस्कार है।
SR No.010415
Book TitleMahavira Purana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherJain Granth Uddharak Karyalaya
Publication Year1917
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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