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________________ MRI इस प्रकार वे महावीर स्वामी मगसिर कृष्णा दशमीको सायंकाल हस्त और उत्तरा नक्षत्रके मध्यभागमें शुभ मुहूर्तमें मोक्षरूपी कामिनीकी उत्तम सखी और दुर्लभ||३॥ ऐसी जिन दीक्षाको अकेले ग्रहण करते हुए । भगवान् महावीरके केशोंको मस्तकमें ||२|| बहुत कालतक रहनेसे पवित्र हुए समझकर वह इंद्र अपने हाथसे प्रकाशमान रत्नोंकी पिटारीमें रखकर और पूजाकर दिव्यवस्वसे ढंककर वडे उच्छवके साथ लेजाकर क्षीरोहादधि समुद्रके स्वभावसे शुद्ध जल में डालते हुए । देखो जिनेश्वरके आश्रयसे वे काले अचेतन केश ऐसी पूजा पाते हुए तो साक्षात् जिनेश्वरसे पुरुषोंको क्या इष्टसिद्धि नहीं | होसकती सव हो सकती है। इस संसारमें जिन भगवानके चरणकमलोंके आश्रयसे जैसे यक्ष सन्मान पाते हैं| उसीतरह अईत प्रभुका सहारा लेनेवाले नीच पुरुष भी पूजे जाते हैं यह वात ठीक ही है । अयानंतर उस समय वह महावीर प्रभु दिगंवर स्वरूपको धारता तपे हुए सोनेके । समान शरीरवाला स्वाभाविक कांति दीप्ति आदि तेजका पुंज सरीखा शोभता हुआ। जवाद संतुष्ट हुए इंद्र उस महावीर परमेष्ठीके गुणोंकी स्तुति करते हुए । हे देव इस संसारमें तुम ही परमात्मा ही जगतके महान् गुरु तुम ही हो तुम ही गुणोंके समुद्र हो । जगतके स्वामी हो तुमने ही शत्रुओंको जीत लिया है अति निर्मल तुम ही हो । लम्ब
SR No.010415
Book TitleMahavira Purana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherJain Granth Uddharak Karyalaya
Publication Year1917
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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