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________________ जल्द अ.१२ म. वी. हो बंधुओंके साथ रोती हुई विलाप करती हुई अपने पुत्रके पीछे गई। वह ऐसा विलाप पु. भा. 8 करती हुई कि हे पुत्र तू मुक्तिमें रागी हुआ आज मुझे छोड़कर कहां गया। हे मेरे . . चित्तको प्यारे तुझे मैं आंखोंसे देखना चाहती हूं क्योंकि अब मैं तेरा वियोग क्षणभर l ॥८ ॥ भी नहीं सह सकती इस लिये तेरे विना मैं अब वहुत कैसे जीवृंगी । हाय अतिको& मलशरीरवाले तू दुर्जय परीपहोंको और घोर उपसर्गोको कैसे जीत सकेगा। . हे पुत्र बड़ी कठिनाईसे वशमें आनेवाले इंद्रियरूप हाथियोंको, तीनलोकको जीतने वाले कामदेवको और कषायरूपी वैरियोंको तू कैसे धीरपनेसे मार सकेगा । हा पुत्र हा बहुत छोटा बच्चा तू अकेला क्रूर मांसाहारी जीवोंसे भरे बड़े भयानक जंगलमें और गुफा आदिमें कैसे रह सकेगा । इस प्रकार विलाप करती हुई और रास्तेमें पैरोंको गेरते ४) हुई । उस जिनमाताके पास महत्तरदेव आकर बोले, हे माता क्या इस जगतगुरूका हाल तू नहीं जानती, यह तीन जगतका स्वामी अद्भुत पराक्रमवाला तेरा पुत्र है। यह आत्मज्ञानी तीर्थराजा संसार समुद्रमें गिरनेसे पहले ही अपना उद्धार कर पीछे बहुत ! 9 भव्योंका उद्धार निश्चयसे करेगा। जैसे रस्सीकी फांसीसे बंधा हुआ सिंह कभी दुर्जय ६ नहीं होता उसी तरह हे देवी यह तेरा पुत्र भी मोहादि बंधनोंसे बंधा हुआ है जिसको ८१॥ हा संसारका किनारा पार करना बहुत निकट रहा है ऐसा जगतको उद्धार करनेमें समर्थ :
SR No.010415
Book TitleMahavira Purana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherJain Granth Uddharak Karyalaya
Publication Year1917
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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