SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 114
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उन्ट अ.८ (प्रश्न ) दुनियांके अंदर सुखी कोन है (उत्तर ) जो सब परिग्रहकी उपाधियोंसे पु. भा. रहित व ध्यानरूपी अमृतका चखनेवाला वन (जंगल) में रहता है-वह योगी ही सुखी है, 2 अन्य कोई भी नहीं। (प्रश्न ) इस संसारमें चिंता किस वस्तुकी करनी चाहिये (उत्तर) कर्मरूपी शत्रुओंके नाश करनेकी और मोक्षलक्ष्मीके पानेकी चिंता करनी चाहिये, दूसरी इन्द्रियादिके विपयसुखोंकी नहीं । (प्रश्न) महान उद्योग किस कार्यमें करना चाहिये । (उत्तर) मोक्षके देनेवाले जो रत्नत्रय तप शुभयोग सुज्ञानादिकोंके पालनेमें महान 18/ यत्न करना चाहिये । धनको इकडे करनेका नहीं क्योंकि धन तो धर्मसे मिलेगा ही। 8 (प्रश्न ) मनुष्योंका परम मित्र कोंन है । ( उत्तर ) जो तप दान व्रतादिरूप धर्मको जबरदस्ती समझाकर पालन करावे और पापकार्योको छुड़ावे । (मश्न) इस संसा१) रमें जीवोंका वैरी कोन है । ( उत्तर ) जो हित करनेवाले तप दीक्षा व्रतादिकोंको नहीं। पालने दे वह दुर्बुद्धि अपना परका दोनोंका शत्रु है । ( प्रश्न ) प्रशंसा करने योग्य क्या है है । ( उत्तर ) जो थोडा धन होनेपर भी सुपात्रकोः दान देना और निर्वल शरीर होने र पर भी निप्पाप तपको करना-यही प्रशंसनीय है । ( प्रश्न ) हे माता तुमारे समान महाराणी कोंन है । (उत्तर) जो धर्मके प्रवर्तानेवाले जगतके गुरु ऐसे श्री तीर्थकर देवा ॥५२॥ थिदेवको पैदा करे-वही मेरे समान है, दूसरी कोई नहीं । ( प्रश्न ) पंडिताई क्या है।
SR No.010415
Book TitleMahavira Purana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherJain Granth Uddharak Karyalaya
Publication Year1917
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy