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________________ म. वी. भावार्थ-जो वैरागी होनेपर भी हमेशा कामिनीको चाहता है और निस्पृही / पु.भा. ल होनेपर भी इच्छावाला है ऐसा दुनियाँमें विलक्षण पुरुष कोंन है । यह पहेली हुई। अ.८ पा उसका उत्तर इसी श्लोकमें परात्मा शब्दसे माताने दिया । क्योंकि परात्माका अर्थ एक हा तो विलक्षण पुरुप है दूसरा परमात्मा भी है । परमात्मा, नित्यकामिनी अर्थात् अविनाशी मोक्षरूपी स्त्री अनुरागी है उसीको चाहनेवाला है ॥ १॥ दृश्यो दृश्यस्त्रिचिद्भूषः प्रकृत्या निर्मलोऽव्ययः । हंता देहविधेर्दैवो नायं व वर्ततेऽद्य सः॥२॥ भावार्थ-जो अदृश्य ( नहीं दीखता ) है तो भी देखने योग्य है स्वभावसे निर्मल होनेपर भी देहकी रचनाका नाशक है परंतु महादेव नहीं है । इस श्लोकौ देवोना शब्दसे उत्तर है कि देवरूपी मनुष्य श्रीअर्हतदेव हैं । यह भी पहेली है। हे सुंदरी असंख्याते मनुष्य देवोंकर सेवा किया गया तीन जगतका गुरु तेरा पुत्र उत्तम अनेक गुणोंसे जयवंत होवे । ( इसके श्लोकमें ओठसे बोलनेमें आनेवाला ६ कोई अक्षर नहीं है इसलिये यह निरोष्ठ्य है) ॥ जिसने दूसरी स्त्रियोंसे प्रेमका सुख १ छोड़ दिया है तो भी अविनाशी मोक्षरूपी स्त्रीमें रागी है ऐसा गुणोंका समुद्र तीन जगतका स्वामी तेरा पुत्र हमारी रक्षा करो। ( इसके श्लोकमें भी निरोग्य अक्षर है)। ॥५०॥
SR No.010415
Book TitleMahavira Purana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherJain Granth Uddharak Karyalaya
Publication Year1917
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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