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________________ कितनी ही देवियां रत्नोंके चूर्णसे विचित्र सातिया वगैरकी रचना करती हुई और कोई कल्पवृक्षके पुष्पोंसे घर सजातीं हुई । कोई आकाशमें ऊंचे महलोंकी चोटियोंपर रत्नोंके दीपक रातको जलाती हुई जो कि अंधकारको नाश करनेवाले हैं। जानेके | समय कपड़े पहराना बैठनेके समय आसन बिछाना इसतरह वे देवियां माताकी सेवा करती हुई । किसी समय जलक्रीडा किसी वक्त वनक्रीडा कोई समय पुत्रके गुणोंको कहनेवाले मिष्ठ गीत गाना किसीसमय नेत्रोंको प्रिय नाचना, वाजा बजाना, कथाकी ही गोष्टी-इत्यादि विक्रिया ऋद्धिके प्रभावसे उत्पन्न विनोद क्रीड़ाओंसे जिन माताको सुख है. ही पहुँचाती हुई । इसप्रकार वह जिन माता पतिव्रता दिक्कुमारी देवियोंसे सेवित हुई अनुपम ! शोभाको धारती हुई। | अथानंतर नौवें महीनेके निकट होनेपर गर्भवती महान् गुणोंवाली बुद्धिके अतिशयको प्राप्त हुई उस सती महारानीको वे देवियें गूढ अर्थ क्रियापदोंसे अनेक प्रश्नोंसे प्रहेलिका निरोष्ठय आदि विचित्र धार्मिक काव्य व श्लोकोंसे रंजायमान करती हुई। बे इस तरह हैं विरक्तो नित्यकामिन्यां कामुकोऽकामुको महान् । सस्पृहो निःस्पृहो लोके परात्मान्यश्च यः स कः॥१॥ सहल
SR No.010415
Book TitleMahavira Purana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherJain Granth Uddharak Karyalaya
Publication Year1917
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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